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षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 126 फिर नानाविध खाद्य प्रदार्थ, पेय पदार्थ, चूष्य पदार्थ, लेह्य पदार्थ से युक्त नैवेद्य को दो पात्र में रखे। एक पात्र जिन प्रतिमा के आगे रखकर निम्न श्लोक पढ़े :
सर्वप्रधानसभूतं देहि देहि सुपुष्टिदं । अन्नं जिनाग्रे रचितं दुखं हरतु नः सदा।।"
यह श्लोक बोलकर हथेली भर जल के द्वारा प्रतिमा के आगे नैवेद्य अर्पित करे। फिर द्वितीय पात्र रखकर निम्न श्लोक पढ़े :
"भो भोः सर्वेग्रहा लोकपालाः सम्यग्दृशः सुराः । नैवेद्यमेतद् गृण्हन्तु भवन्तो भयहारिणः।।।
यह श्लोक बोलकर ग्रह एवं दिक्पालो को हथेली भर जल के द्वारा नैवेद्य अर्पित करे।
लेप से निर्मित जिन प्रतिमा को स्नान कराए बिना इसी मंत्र से नैवेद्य अर्पित करे। फिर आरती और मंगलदीपक पूर्व में कहे गए अनुसार करे और शक्रस्तव का पाठ करे। तत्पश्चात् अगर प्रतिमा स्थिर है, तो उसी को स्नान कराए तथा उसकी सम्पूर्ण विधि भी वही करे।
"श्रीखण्डकपूरकुरंगनाभिप्रियंगुमांसीनखाकाकतुण्डैः । जगत्त्रयस्याधिपतेः सपर्याविधौविदध्यात्कुशलानि धूपः ।।
इस छंद के द्वारा सर्व पुष्पांजलि दे। बीच-बीच में धूप उत्क्षेपण और शक्रस्तव का पाठ करे। प्रतिमा का विसर्जन निम्न छंद बोलकर करे
"ऊँ अहँ नमो भगवते अर्हते समये पुनः पूजां प्रतीच्छ स्वाहा"
इस प्रकार पुष्प चढ़ाते हुए प्रतिमा का विसर्जन करे। फिर निम्न छंद से दिक्पाल आदि का विसर्जन करे -
"ऊँ ह्रः इन्द्रादयोलोकपालाः, सूर्यादयो ग्रहाः, सक्षेत्रपालाः, सर्वदेवाः सर्वदेव्यः पुनरागमनाय स्वाहा"
इस प्रकार पुष्पपूजा आदि के द्वारा दिक्पाल एवं ग्रहों को विसर्जित करे। फिर निम्न छंद बोले :
“आज्ञाहीनं क्रियाहीनं मंत्रहीनं च यत्कृतम् । तत्संर्व कृपया देवाः क्षमन्तु परमेश्वराः । 11 ।।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् । पूजां चैव न जानामि त्वमेव शरणमं मम ||2|| कीर्ति श्रियो राज्य पदं सुरत्वं न प्रार्थये किंचन देव देव। मत्प्रार्थनीयं भगवन् प्रदेयं स्वदासतां मां नय सर्वदापि"।।3।।
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