SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षोडश संस्कार सिवसुहभूओ सिवं दिसओ | 127 | 1 दिसओ | |26 ।। निविअअट्टकम्मो अमरनररायमहिओ अणाइनिहणो पओसमच्छरआहिअहिअया पणासमुवयंति । दुगुणीकयधणुसद्दं सोओपि महाधणु सहस्सं । । 28 ।। इय तिहुअणप्पमाणं सोलसपत्तं जलंतदित्तसरं । अट्ठारअद्धवलयं पंचनमुक्कारचक्कमिणं | 29 ।। सयलुज्जोइअभुवणं निद्दाविअसेससत्तुसंघायं। नासिअमिच्छत्ततमं वियलिअमोहं गयतमोहं | 130 ।। एयस्स य मज्झत्थो सम्मदिट्ठीवि सुद्धचारिती । नाणी पवयणभत्तो गुरूजणसुस्सूसापरमो । । 31 ।। जो पंचनमुक्कारं परमोपुरिसो पराइभत्तीए । परियत्तेइ पइदिणं पयओ सुद्धप्पओगप्पा । 32 ।। अट्ठेवय अट्ठसया अट्ठसहस्सं च उभयकालंपि। अट्ठेवयकोडीओ सो तइअभवे लहइ सिद्धिं । 33 ।। एसो परमो मंतो परमरहस्तं परंपरं तत्तं । नाणं परमं णेअं सुद्धं झाणं परऽझेयं । ।34 ।। एवं कवयमभेयं खाइयमत्थं परा भुवणरक्खा। जोईसुन्नं बिन्दुं नाओ तारालवो मत्ता | 135 ।। सोलसपरमक्खरबी अबिंदुगप्भो जगुत्तमो जोओ। सुअबारसंगसायरमहत्थपुवत्थपरमत्थो । । 36 ।। नासेइ चोरसावयविसहरजलजलणबंधणसयाइं । चिंतिज्जंतो रक्खसरणरायभयाइं भावेणं । ।37।।” Jain Education International आचार दिनकर — For Private & Personal Use Only - अर्हणादि स्तोत्र पढ़कर "जयवीयरायजगगुरू" इत्यादि गाथाएँ बोलें । आचार्य, उपाध्याय, गुरू एवं साधुओं को वन्दन करें। यह शक्रस्तव की विधि गुरु एवं श्रावक - दोनों करें। चैत्यवंदन के बाद श्रावक खमासमणा देकर कहता है - "हे भगवन् ! मैं सम्यक्त्व सामायिक, श्रुत सामायिक, देशविरति सामायिक आरोपण एवं नंदी - क्रिया करने के लिए कायोत्सर्ग करूं ?" गुरू कहते हैं " करो।" फिर श्रावक सम्यक्त्वत्रय के आरोपण हेतु "मैं कायोत्सर्ग करता हूँ"- ऐसा कहकर एवं अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करे । इस कायोत्सर्ग में सत्ताईस श्वासोश्वास प्रमाण चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करें। पश्चात् अरिहंतो को नमस्कार द्वारा कायोत्सर्ग पूर्ण कर चतुर्विंशतिस्तव बोले । उसके बाद मुँहपत्ति प्रतिलेखन करके द्वादश आवर्त्त सहित वन्दन करे । पुनः खमासमणा देकर कहे "हे भगवन् ! मुझे सम्यक्त्वादि त्रिक का आरोपण कराएं।" गुरू कहते हैं "मैं आरोपण करता हूँ।" उसके बाद श्रावक गुरू के आगे खड़े होकर, अंजलि बांधकर मुखवस्त्रिका से मुख को आच्छादित करके तीन बार परमेष्ठी - मंत्र का उच्चारण करे, फिर सम्यक्त्व दंडक का उच्चारण करे, जिसका भावार्थ इस प्रकार है। - 86 निरंजणो सिद्धो । सव्वे www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy