________________
षोडश संस्कार
आचार दिनकर - 84 पुनः क्षेत्र-देवता की आराधना हेतु “मैं कायोत्सर्ग करता हूँ"- ऐसा कहकर तथा 'अन्नत्थसूत्र' बोलकर कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में एक नवकार का चिंतन करें। उसके बाद 'नमो अरिहंताणं' कहकर कायोत्सर्ग पूर्ण करे एवं "नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्य' कहकर निम्न स्तुति बोलें -
"यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य साधुभिः साध्यते क्रिया। सा क्षेत्रदेवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी ।।"
पुनः भुवनदेवता के आराधन हेतु “मैं कायोत्सर्ग करता हूँ"- यह कहकर एवं 'अन्नत्थसूत्र' बोलकर कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में एक बार नवकारमंत्र का स्मरण करें। उसके बाद "नमो अरिहंताणं" कहकर कायोत्सर्ग पूर्ण करें एवं "नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपा- ध्यायसर्वसाधुभ्यं" कहकर निम्न स्तुति बोलें -
"ज्ञानादिगुणयुतानां नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् । विदधातु भुवन देवी शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ।।"
फिर शासन-देवता के आराधन हेतु “मैं कायोत्सर्ग करता हूँ"- यह कहकर एवं 'अन्नत्थसूत्र' बोलकर कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में एक बार नवकारमंत्र का स्मरण करें। फिर "अरिहंतो को नमस्कार हो" इस प्रकार कहकर कायोत्सर्ग पूर्ण करे। तत्पश्चात् "नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यं" कहकर निम्न स्तुति बोलें -
"या पाति शासनं जैनं सद्यः प्रत्यूहनाशिनी। साभिप्रेत समृद्धयर्थ भूयाच्छासन देवता ।।"
समस्त “वैयावृत्य करने वालों के आराधन हेतु “मैं कायोत्सर्ग करता हूँ"- ऐसा कहकर एवं अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में एक नवकार मंत्र का स्मरण करें। कायोत्सर्ग पूर्ण कर "नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्य" कहकर निम्न स्तुति बोलें
"ये ते जिनवचनरता वैयावृत्त्योद्यताश्य ये नित्यम् । ते सर्वे शान्तिकरा भवन्तु सर्वाणुयक्षायाः ।।"
'नमो अरिहंताण' बोलकर बैठे एवं "नमुत्थुणं" सहित "जांवति चेइआई" सूत्र एवं "अर्हणादिस्तोत्र" पढ़ें। अर्हणस्तोत्र इस प्रकार है :
__"अरिहाणं नमो पूअं अरहंताणं रहस्सरहियाणं। पयओ परमिट्ठीणं अरहताणं धुअरयाणं 11|| निदृढभट्टकम्भिधणाणं वरनाणदंसणधराणं। मुत्ताण नमो सिद्धाणं परमपरिमिट्ठभूयाणं ।।2।। आयारधराण नमो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org