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________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 71 सनत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलान्तकशुक्रसहस्रारानतप्राणतारणाच्युतग्रैवेयकानुत्तरभवान् वैमानिकान् इन्द्रसामानिकान् पार्षद्यत्रयस्त्रिशल्लोकपालानीकप्रकीर्णलोकान्तिकाभियोगिकभेदभिन्नांश्चतुर्णिकायानपिसभार्यान् सायुधबलवाहनान् स्वस्वोपलक्षित चिह्नान्, अप्सरसश्च परिगृहीतापरिगृहीताभेदभिन्नाः समसखिकाः सदासिकाः साभरणारूचकवासिनीर्दिक्कुमारिकाश्च सर्वाः, समुद्रनदीगिर्याकरवनदेवतास्तदेतान् सर्वान् सर्वाश्च इदं अर्घ्य पाद्यमाचमनीयं बलिं चरू हुंत न्यस्तं ग्राह्यग्राह्य, स्वयं गृहाणगृहाण, स्वाहा अर्ह ऊँ।" उसके बाद उत्तम आहुतियों से अग्नि को विशेष रूप से प्रज्वलित हो जाने पर गृहस्थ गुरू वहाँ से उठकर वर के दक्षिण पार्श्व में बैठी हुई वधू के समक्ष बैठकर यह कहे - "ॐ अर्ह इदमासनमध्यासीनौ स्वाध्यासीनौ स्थितौ सुस्थितौ तदस्तु वां सनातनः संगम अर्ह ऊँ।" यह कहकर कुशाग्र द्वारा तीर्थ-जल से उन दोनों को अभिसिंचित करे। उसके बाद वधू के दादा, या पिता, या पितजन, या भाई, या नाना, या मामा, या कुल-ज्येष्ठ धर्मानुष्ठान करने के लिए उचित वेश पहनकर वर-वधू के सामने बैठे। फिर शान्तिक– पौष्टिक की क्रिया आरंभ करे। विवाह के मास तक मंगलगीत गाने वाले तथा वाद्य-यंत्र बजाने वाले लोगों को भोजन, पान, वस्त्र सामग्री की हमेशा याचना (मांग) रहती है। उसके बाद गृहस्थ गुरू "ऊँ नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः"- यह कहकर दूब एवं अक्षत हाथों में भरकर वधू तथा वर के समक्ष इस प्रकार कहे – “तुम दोनों का जो प्रसिद्ध गोत्र है, उसे सम्बन्ध के लिए लोगों के समक्ष प्रकाशित करें।" तब पहले वरपक्ष के लोग अपने गोत्र, कुल (परिवार), जाति तथा वंश का प्रकाशन करें। उसके बाद पुनः वे वर के मातृपक्ष का (ननिहाल पक्ष का) गोत्र, कुल, जाति तथा वंश को प्रकट करें। उसके बाद कन्यापक्ष के लोग अपने गोत्र, कुल, जाति तथा वंश को प्रकट करें, पुनः वे कन्या के मातृ-पक्ष का (ननिहाल पक्ष का) गोत्र, कुल, जाति एवं वंश प्रकट करें, उसके बाद गृहस्थ गुरू मंत्र द्वारा उन दोनों के सम्बन्ध की जानकारी दें, वह इस प्रकार है - ____ "ऊँ अर्ह अमुकोऽमुकगोत्रीयः, इयत्प्रवरः, अमुकज्ञातीयः, अमुकान्वयः, अमुकप्रपौत्रः, अमुकपौत्रः, अमुकपुत्रः, अमुकगोत्रीयः, इयत्प्रवरः, अमुकज्ञातीयः, अमुकान्वयः, अमुकप्रदौहित्रः, अमुकगोत्रीयः, इयत्प्रवरः, अमुकज्ञातीयः, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001690
Book TitleJain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2005
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Culture, & Vidhi
File Size12 MB
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