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शुभाशीर्वाद
वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर के प्रथम भाग में वर्णित गृहस्थ के सोलह संस्कारों से संबंधित अंश का अनुवाद कर उसे पुस्तक रूप में छपाने का आपका यह प्रयास सराहनीय है। डॉ. श्री सागरमलजी के पूर्ण सहयोग से आपने जो महत् कार्य किया है, उसकी मैं अनुमोदना करता हूँ। ऐसे पुनीत कार्य के लिए मेरा शुभाशीर्वाद है। आगे भी सम्पूर्ण ग्रन्थ का अनुवाद कर उसे प्रकाशित करवाने का सुयश आपको प्राप्त हो और उस कार्य में आप सफल हो, यही शुभेच्छा है।
गच्छ हितेच्छु गच्छाधिपति कैलाश सागर
शुभाषीश
'आचारदिनकर' ग्रन्थ खरतरगच्छ परम्परा की अमूल्य धरोहर है। यह एक ऐसा ग्रन्थ रत्न है, जिसके अन्तर्गत गृहस्थ एवं साधु जीवन के संस्कारों का आलेखन सुंदर रीति से किया गया है।
साध्वी मोक्षरत्ना श्री जी ने इस ग्रंथ का अनुवाद करके साहित्य जगत में अभिवृद्धि की है। हमारा आशीर्वाद है कि वे इसी प्रकार साहित्य सेवा करके जिनशासन की प्रभावना करती रहे।
- जयानन्दमुनि
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