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उमास्वाति एवं उनकी उच्चै गर शाखा का उत्पत्ति स्थल... : ८१
प्रो. के.डी. बाजपेयी ने नागोद से २४ कि.मी. दूर नचना के पुरातात्त्विक महत्त्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है। नागोद की अवस्थिति पन्ना (म.प्र.), नचना और ऊँचेहरा के मध्य है। इन क्षेत्रों में शुंगकाल से लेकर ९वीं-१०वीं शती तक की पुरातात्त्विक सामग्री मिलती है, अत: इसकी प्राचीनता में सन्देह नहीं किया जा सकता। नागोद न्यग्रोध का ही प्राकृत रूप है, अतः सम्भावना यही है कि उमास्वाति का जन्म स्थल यही नागोद था और जिस उच्चनागरी शाखा में वे दीक्षित हुए थे, वह भी उसी के समीप स्थित ऊँचेहरा (उच्चकल्प नगर) से उत्पन्न हुई थी। तत्त्वार्थभाष्य की प्रशस्ति में उमास्वाति की माता को वात्सी कहा गया है। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि वर्तमान नागोद और ऊँचेहरा दोनों ही प्राचीन वत्स देश के अधीन ही थे। भरहुत और इस क्षेत्र के आस-पास जो कला का विकास देखा जाता है, वह कौशाम्बी अर्थात् वत्सदेश के राजाओं के द्वारा ही किया गया था। ऊँचेहरा वत्सदेश के दक्षिण का एक प्रसिद्ध नगर था। भरहुत के स्तूप के निर्माण में भी वात्सी गोत्र के लोगों का महत्त्वपूर्ण योगदान था, ऐसा वहाँ से प्राप्त अभिलेखों से प्रमाणित होता है। भरहुत के स्तूप के पूर्वी तोरणद्वार पर वाच्छीपत्त धनभूति का उल्लेख है। वत्सगोत्र के लोगों की बहलता के कारण ही यह क्षेत्र वत्स देश कहलाता होगा और उमास्वाति की माता इसी गोत्र की थीं। अत: हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि उमास्वाति का जन्मस्थल नागोद मध्यप्रदेश (न्यग्रोध) और उनकी उच्चै गर शाखा का उत्पत्ति स्थल ऊँचेहरा (म.प्र.) है। पुन: उन्होंने वर्तमान पटना (कुसुमपुर) में अपना तत्त्वार्थभाष्य लिखा था अत: वे उत्तर भारत के निग्रंथ संघ में हुए हैं। उनका विचरण क्षेत्र पटना से मथुरा तक अर्थात् वर्तमान बिहार, उत्तरप्रदेश, उत्तर-पूर्वी मध्यप्रदेश और पश्चिमी राजस्थान तक माना जा सकता है।
इस प्रकार प्रस्तुत आलेख में मैंने उमास्वाति के जन्मस्थल और विचरण क्षेत्र का विचार किया, जो मुख्यत: अभिलेखीय और साहित्यिक साक्ष्यों पर आधारित है। विद्वानों से मैं इनकी सम्यक् समीक्षा की अपेक्षा रखता हूँ, ताकि इस महान जैन दार्शनिक के इतिवृत्त को अनुश्रुतियों की धुंध से निकाल कर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में सम्यकरूपेण देखा जा सके।
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