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________________ ७० महानसिक, गजाध्यक्ष आदि राजकीय अधिकारियों के पदों की सूची है। अट्ठाईसवें अध्याय में उद्योगी लोगों की महत्त्वपूर्ण सूची है। उनतीसवां अध्याय नगरविजय नाम का है, इसमें प्राचीन भारतीय नगरों के सम्बन्ध में बहुत सी बातों का वर्णन है। तीसवें अध्याय में आभूषणों का वर्णन है। बत्तीसवें अध्याय में धान्यों के नाम हैं। तैंतीसवें अध्याय में वाहनों के नाम दिये गये हैं। छत्तीसवें अध्याय में दोहद सम्बन्धी विचार हैं। सैतीसवें अध्याय में १२ प्रकार के लक्षणों का प्रतिपादन किया गया है। चालीसवें अध्याय में भोजन-विषयक वर्णन है। इकतालीसवें अध्याय में मूर्तियां, उनके प्रकार, आभूषण और अनेक प्रकार की क्रीड़ाओं का वर्णन है। तैतालीसवें अध्याय में यात्रा सम्बन्धी वर्णन है। छियालिसवें अध्याय में गृहप्रवेश सम्बन्धी शुभ-अशुभ फलों का वर्णन है। सैंतालीसवें अध्याय में राजाओं की सैन्ययात्रा सम्बन्धी शुभाशुभ फलों का वर्णन है। चौवनवें अध्याय में सार और असार वस्तुओं का विचार है। पचपनवें अध्याय में जमीन में गड़ी हुई धनराशि की खोज करने के सम्बन्ध में विचार है। अट्ठावनवें अध्याय में जैनधर्म में निर्दिष्ट जीव और अजीव का विस्तार से वर्णन किया गया है। साठवें अध्याय में पूर्वभव जानने की विधि सुझाई गई है।" 'अंगविज्जा' की उपरोक्त विषयवस्तु उसके सांस्कृतिक सूचनात्मक पक्ष को सूचित करती है किन्तु लेखक का मूल उद्देश्य इन सबके आधार पर विभिन्न प्रकार के फलादेश करना ही था। लेखक इतने मात्र से संतुष्ट नहीं होता है, वह अशुभ फलों के निराकरण एवं वांछित फलों की प्राप्ति के लिए विभिन्न मान्त्रिक साधनाओं का उल्लेख करता है। इसे हमें ध्यान में रखना होगा। यहाँ जैन मन्त्रशास्त्र के साहित्य में इस ग्रन्थ के उल्लेख करने का मुख्य आधार यह है कि इस ग्रन्थ के विभिन्न अध्यायों में जैन परम्परा के अनुरूप मन्त्र साधना सम्बन्धी विधि-विधान भी उपलब्ध हो जाते हैं। इसके आठवें भूमिकर्म नामक अध्याय के प्रथम गजबन्ध नामक संग्रहणी पटल में जैन परम्परानुसार विविध मंत्र तथा उन मन्त्रों के साधना सम्बन्धी विधि-विधान प्राकृत मिश्रित संस्कृत भाषा में दिये गये हैं, जिन्हें हम नीचे अविकल रूप से दे रहे हैं - (अट्ठमो भूमीकमऽज्झाओ ) ( तत्थ पढमं गज्जबंघेणं संगहणीपडलं) (१) णमो अरहताणं, णमो सव्वसिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं, णमो महापुरिसस्स महतिमहावीरस्स सव्वण्णू-सव्वदरिसिस्स। इमा भूमीकम्मस्स विज्जा-इंदिआली इंदिआलि माहिंदे मारुदि स्वाहा, णमो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001689
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2006
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size12 MB
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