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________________ ४० इस स्थान पर तीर्थ स्थापन नहीं होने का कारण भी स्पष्ट है। चूंकि आज भी यह स्थान निर्जन है उस काल में तो यह इससे भी अधिक निर्जन रहा होगा, फिर सन्ध्याकाल होते होते वहाँ कोई उपदेश सुनने को उपलब्ध हो, यह भी सम्भव नहीं था। साथ ही इस क्षेत्र में महावीर के परिचितजनों का भी अभाव था, अत: भगवान महावीर ने यह निर्णय किया होगा कि जहाँ उनके ज्ञातीजन या परिचितजन रहते हों ऐसी मध्यमा अपापापुरी (पावापुरी) में जाकर प्रथम उपदेश देना उचित होगा। ज्ञातव्य है कि आगमिक व्याख्याओं में लछुवाड़ से मध्यदेश में स्थित मल्लों की राजधानी पावा की दूरी १२ योजन बताई गई है, जो लगभग सही प्रतीत होती है। वर्तमान में भी लछुवाड़ से उसमानपुर-वीरभारी के निकटवर्ती स्थल को पावा मानने पर ऋज या सीधे मार्ग से वह दूरी लगभग १९० किलोमीटर होती है। १५ किलोमीटर का एक योजन मानने पर यह दूरी १८० किलोमीटर होती है। ज्ञातव्य है जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश में एक योजन ९.०९ मील के बराबर बताया गया है। इस आधार पर १ योजन लगभग १५ किलोमीटर का होता है। मानचित्र में हमने इसे स्केल से मापकर भी देखा है जो लगभग सही है। इस प्रकार हमारी दृष्टि में महावीर का केवलज्ञान प्राप्ति का स्थल जमई के निकटवर्ती क्षेत्र लछवाड़ ही है, वर्तमान बाराकर और जामू नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001689
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2006
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size12 MB
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