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________________ भगवान महावीर का जन्म स्थल : एक पुनर्विचार : ३३ लछवाड़ में महावीर की स्मृति में ही प्राचीनकाल में कोई मंदिर अवश्य बना था, किन्तु यह महावीर का जन्मस्थल था यह स्वीकार करने में अनेक बाधाएं हैं। इस सम्बन्ध में डॉ. सीताराम राय का एक लेख 'श्रमण' अगस्त १९८९ में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने लछवाड़ को महावीर का जन्म स्थान स्वीकार किये जाने के सन्दर्भ में एक तर्क यह दिया है कि कल्पसूत्र का कुण्डग्राम पहाड़ी क्षेत्र में अवस्थित था जबकि वैशाली के पास वसकण्ड में पहाड़ों का नामो-निशान नहीं है। किन्तु लेखक ने यह निर्णय कैसे ले लिया कि कल्पसूत्र में कुण्डग्राम को पहाड़ी क्षेत्र में अवस्थित बताया गया है, समझ से परे है। कल्पसूत्र में एवं आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में महावीर के जन्म स्थल का पहाड़ी क्षेत्र में अवस्थित होना कहीं भी उल्लिखित नहीं हैं। इसी प्रकार प्रस्तुत लेखक ने यह भी लिखा है कि महावीर के गृहस्थ जीवन के परित्याग के अवसर पर कुण्डग्राम का परित्याग कर उससे उत्तर-पश्चिम की ओर पहाड़ की ओर ज्ञातृखण्ड वन पहुंचने का वर्णन मिलता है, किन्तु यहां भी पहाड़ की कल्पना लेखक की स्वैर कल्पना है। आचारांग, कल्पसूत्र यहां तक की आवश्यकचूर्णि में भी जहां ज्ञातय वनखण्ड का उल्लेख है, वहां भी कहीं पहाड़ आदि होने का उल्लेख नहीं है। सीताराम राय ने जमुई अनुमण्डल के लछवाड़ को जो महावीर का जन्म स्थल मानने का प्रयत्न किया है और उसकी पुष्टि में आवश्यकचूर्णि में उल्लिखित उनकी विहारयात्रा के कुछ गांव यथा - कुमार, कोल्लाग, मोरक, अस्थिय ग्राम का समीकरण वर्तमान कुमार, कोन्नाग, मोरा और अस्थावा से करने का प्रयत्न किया है, वह नाम साम्य को देखकर तो थोड़ा सा विश्वसनीय प्रतीत होता है किन्तु जब हम इनकी दरियों का विचार करते हैं तो वैशाली के निकटवर्ती कुमार, कोल्हुवा, अत्थिय गांव आदि से ही अधिक संगति मिलती है। वर्तमान में भी भिन्न-भिन्न प्रदेशों और मण्डलों के समान नाम वाले गांवों के नाम उपलब्ध हो जाते हैं। वस्तुत: डॉ. सीताराम राय ने जो समीकरण बनाने का प्रयास किया है वह दूरियों के हिसाब से समुचित नहीं है। उन्होंने जमुई से वर्तमान पावा की आगमों में उल्लिखित १२ योजन की दूरी को आधुनिक पावापुरी से समीकृत करने का जो प्रयत्न किया है वह किसी भी रूप में मान्य नहीं हो सकता। लेखक ने स्वयं भी जमुई से पावापुरी तक की यात्रा की है। बारह योजन की दूरी का तात्पर्य लगभग १६० कि.मी. होता है, जबकि जमुई से पावापुरी की दूरी मात्र ६० कि.मी. के लगभग है। अत: जमुई को महावीर का केवलज्ञान का स्थान मान भी लिया जाय तो भी उससे वर्तमान पावा की दूरी आगमिक आधारों पर समुचित सिद्ध नहीं होती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001689
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2006
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size12 MB
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