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________________ १०४ में करेंगे। इस वर्ग में अन्य जिन व्यक्तियों का उल्लेख है उनमें सारन, दारुक और अनाधृष्टि भी हैं जो वसुदेव और धारिणी के पुत्र थे और इसप्रकार वे भी अन्य माता से उत्पन्न श्रीकृष्ण के ही भाई थे। अन्य व्यक्तियों में सुमुख, दुर्मुख और कपदारक ये तीन बलदेव के पुत्र थे और ये तीनों श्रीकृष्ण के भतीजे थे। इस प्रकार तीसरे वर्ग में कृष्ण के दस भाइयों और तीन भतीजों का उल्लेख है। चतुर्थ वर्ग में जो दस अध्ययन हैं उनमें जालि, मयालि, उपालि, पुरुषसेन और वायुसेन ये पांच वसुदेव और धारिणी के पुत्र कहे गये हैं। इस प्रकार ये भी श्रीकृष्ण के भाई थे। प्रद्युम्न और शाम्ब ये दो कृष्ण के पुत्र थे। यद्यपि इनमें प्रद्युम्न की माता रुक्मिणी और शाम्ब की माता जाम्बवंती थीं। अनिरुद्ध कुमार को प्रद्युम्न और वैदर्भी का पुत्र बताया गया है। इस प्रकार अनिरुद्ध कृष्ण के पौत्र हैं। सत्यनेमि और दृढ़नेमि समुद्रविजय और शिवादेवी के पुत्र कहे गये हैं। अत: ये अरिष्टनेमि के सहोदर और श्री कृष्ण के चचेरे भाई कहे जा सकते हैं। इस प्रकार चौथे वर्ग में कृष्ण के दो चचेरे भाई, पांच भाई, दो पुत्र और एक पौत्र का उल्लेख है। पांचवें वर्ग में १. पद्मावती २. गौरी ३. गान्धारी ४. लक्ष्मणा ५. सुसीमा ६. जाम्बवंती ७. सत्यभामा और ८. रुक्मिणी - इन आठ कृष्ण की पटरानियों एवं मूलश्री एवं मूलदत्ता नामक दो पुत्रवधुओं का उल्लेख है। ये सभी रानियों द्वारिका के विनाश की भविष्यवाणी सुनकर अरिष्टनेमि के पास दीक्षित होने का निर्णय करती हैं और श्रीकृष्ण समारोह पूर्वक उन्हें प्रवज्या ग्रहण करवाते हैं । इनमें मूलश्री और मूलदत्ता कृष्ण और जाम्बवंती के पुत्र शाम्बकुमार की पत्नियां अर्थात् श्रीकृष्ण की पुत्रवधुएँ थीं। इस प्रकार हम देखते हैं कि अन्तकृत्दशा के प्रथम पाँच वर्ग और उनके उनपचास अध्याय श्री कृष्ण के परिवार से ही सम्बन्धित हैं। अन्तकृत्दशा में श्री कृष्ण के जिन परिजनों का उल्लेख हुआ है उनमें से अनेक तो ऐसे हैं जिनका नाम हमें हिन्दू परम्परा के अन्य ग्रन्थों में मिल जाता है। किन्तु उनमें कुछ ऐसे भी हैं जिनका उल्लेख हमें अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। चाहे इन सभी नामों की ऐतिहासिकता विवादास्पद हो, किन्तु इससे कृष्ण और उनके परिजनों का जैन परम्परा में क्या स्थान है, यह स्पष्ट हो जाता है। द्वारिका के विनाश एवं श्रीकृष्ण के भावी तीर्थकर होने की भविष्यवाणी प्रस्तुत अष्टम अंग आगम श्रीकृष्ण जीवनवृत्त के सम्बन्ध में कुछ नई सूचनाएं भी प्रदान करता है। इसमें द्वारिका के विनाश की कथा एक भिन्न ढंग से चित्रित की गई है। यद्यपि उस पर हिन्दू परम्परा का स्पष्ट प्रभाव भी देखा जा सकता है। अंतकृत्दशा के अनुसार श्रीकृष्ण अरिष्टनेमि से द्वारिका के भविष्य के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001689
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2006
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size12 MB
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