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________________ १२ प्राकृत एवं अपभ्रंश जैन साहित्य में कृष्ण : ९९ गया है। इन ग्रन्थों में समवायांग पूर्वभाग के ५४वें समवाय में २४ तीर्थंकर, चक्रवर्ती, ९ बलदेव एवं ९ वासुदेव ये ५४ उत्तम पुरुष होते हैं मात्र यह उल्लेख है। यहां इनके नामों का भी उल्लेख नहीं है । किन्तु समवायांग के ही अंतिम भाग में बलदेवों एवं वासुदेवों के वर्तमान भव के नाम, पूर्व भव के नाम, निदान कारण और निदान नगरों के नाम तथा उनके माता-पिता, पूर्व भव के धर्माचार्य और वर्तमान भव के प्रतिशत्रु (प्रतिवासुदेव) के नाम आदि का उल्लेख है। इसी प्रसंग में नवें वासुदेव के रूप में कृष्ण का नाम आता है। कृष्ण के पिता के रूप में वसुदेव और माता के रूप में देवकी का उल्लेख यहां भी हमें प्राप्त होता है। इसी प्रसंग में सामान्य रूप से वासुदेवों और बलदेवों की सम्पदा, शारीरिक शक्ति, व्यक्तित्व आदि का विस्तृत उल्लेख किया गया है। इस चर्चा में जो महत्त्वपूर्ण उल्लेख है वह यह कि बलदेव कटिसूत्र वाले नीले कौशेयक वस्त्र को और वासुदेव कटिसूत्र वाले पीतकौषेयक वस्त्र को धारण करते हैं। इसी प्रकार यहां यह भी बताया गया है कि बलदेव हल और मूसल रूपी अस्त्रों को धारण करते हैं और वासुदेव श्रृंग, धनुष, पाञ्चजन्य शंख, सुदर्शन चक्र, कौमुदकी गदा, नन्दक खड्ग धारण करते हैं और उनका मुकुट कौस्तुभमणि से युक्त होता है। वैष्णव परम्परा में कृष्ण और बलदेव की वेशभूषा एवं आयुध आदि की जो चर्चा है उससे इस विवरण की समानता है । यद्यपि हमें स्मरण रखना चाहिए कि ये सभी उल्लेख समवायांग- सूत्र के अंतिम भाग में पाये जाते हैं जो उसके परिशिष्ट के रूप में है। इससे ऐसा लगता है कि इन्हें समवायांग में बाद में जोड़ा गया है। फिर भी वर्तमान समवायांग का जो कुछ स्वरूप है, वह ईसा की ५वीं शताब्दी में निश्चित हो गया था। अतः ये सारे विवरण उनसे प्राचीन ही हैं, परवर्ती नहीं । अत: यह मानने में हमें आपत्ति नहीं होना चाहिए कि यह समग्र विवरण हिन्दू परम्परा से प्रभावित हैं । कृष्ण के व्यक्तित्व के सम्बन्ध में आगम साहित्य में समवायांग के पश्चात् कृष्ण का जो प्राचीन उल्लेख हमें प्राप्त होता है, वह हमें ज्ञाताधर्मकथा में मिलता है । विद्वानों ने ज्ञाताधर्मकथा को लगभग ईसा की द्वितीय शताब्दी के आसपास की रचना माना है। ज्ञाताधर्मकथा में कृष्ण सम्बन्धी उल्लेख उसके शैलक एवं द्रौपदी नामक अध्ययनों में है। यद्यपि द्रौपदी नामक अध्याय का मुख्य प्रतिपाद्य विषय तो द्रौपदी के पूर्वभव एवं वर्तमान भव का चित्रण है, किन्तु प्रसंगवश इसमें कृष्ण सम्बन्धी अनेक विवरण उपलब्ध हैं। विशेष उल्लेखनीय यह है कि यहां द्रौपदी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001689
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2006
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size12 MB
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