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________________ २७ आगमतुल्य ग्रन्थों में यदि अर्धमागधी आगमों के नाम मिलते हैं तो फिर शौरसेनी और उस भाषा में रचित साहित्य अर्धमागधी आगमों से प्राचीन कैसे हो सकता है ? आदरणीय टॉटियाजी के माध्यम से यह बात भी उठायी गयी कि मूलतः आगम शौरसेनी में रचित थे और कालान्तर में उनका अर्धमागधीकरण (महाराष्ट्रीकरण) किया गया। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि महावीर के संघ का उद्भव मगधदेश में हुआ और वहीं से वह दक्षिणी एवं उत्तर-पश्चिमी भारत में फैला। अतः आवश्यकता हुई अर्धमागधी आगमों के शौरसेनी और महाराष्ट्री रूपान्तरण की, न कि शौरसेनी आगमों के अर्धमागधी रूपान्तर की । सत्य तो यह है कि अर्धमागधी आगम ही शौरसेनी या महाराष्ट्री में रूपान्तरित हुए, न कि शौरसेनी आगम अर्धमागधी में रूपान्तरित हुए, अतः ऐतिहासिक तथ्यों की अवहेलना द्वारा मात्र तथ्यहीन तर्क करना कहाँ तक उचित होगा ? बुद्ध वचनों की मूल भाषा मागधी थी, न कि शौरसेनी शौरसेनी को मूल भाषा एवं मागधी से प्राचीन सिद्ध करने हेतु आदरणीय प्रो० नथमल टॉटियाजी के नाम से यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि "शौरसेनी पालि भाषा की जननी है, यह मेरा स्पष्ट चिन्तन है। पहले बौद्धों के ग्रन्थ शौरसेनी में थे जिनको जला दिया गया और फिर पालि में लिखा गया ।" - प्राकृतविद्या, जुलाई-सितम्बर १९९६, पृ० १० । टॉटियाजी जैसा बौद्धविद्या का प्रकाण्ड विद्वान् ऐसी कपोल कल्पित बात कैसे कह सकता है? यह विचारणीय है। क्या ऐसा कोई भी अभिलेखीय या साहित्यिक प्रमाण उपलब्ध है? जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मूल बुद्ध वचन शौरसेनी में थे। यदि ऐसा हो तो आदरणीय टॉटियाजी या भाई सुदीपजी उसे प्रस्तुत करें अन्यथा ऐसी आधारहीन बातें करना विद्वानों के लिये शोभनीय नहीं है। यह बात तो बौद्ध विद्वान् स्वीकार करते हैं कि मूल बुद्ध वचन 'मागधी' में थे और कालान्तर में उनकी भाषा को संस्कारित करके पालि में लिखा गया। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि जिस प्रकार मागधी और अर्धमागधी में किञ्चित् अन्तर है, उसी प्रकार 'मागधी' और 'पालि' में भी किञ्चित अन्तर है, वस्तुतः तो पालि भगवान् बुद्ध की मूल भाषा 'मागधी' का एक संस्कारित रूप ही है, यही कारण है कि कुछ विद्वान् पालि को मागधी का ही एक प्रकार मानते हैं, दोनों में बहुत अन्तर नहीं है। पालि भाषा संस्कृत और मागधी की मध्यवर्ती भाषा है या मागधी का ही एक साहित्यिक रूप है। यह तो प्रमाण सिद्ध है कि भगवान् बुद्ध ने मागधी में ही अपने उपदेश दिये थे, क्योंकि उनकी जन्मस्थली और कार्यस्थली दोनों मगध और उसका निकटवर्ती प्रदेश ही था। बौद्ध विद्वानों का स्पष्ट मन्तव्य है कि मागधी ही बुद्ध वचन की मूल भाषा है। इस सम्बन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001688
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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