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यह भी है कि वे विभिन्न कालों एवं प्रदेशों में सम्पादित होते रहे हैं। सम्पादकों ने उनके प्राचीन स्वरूप को स्थिर रखने का प्रयत्न नहीं किया, अपितु उन्हें सम्पादित करते समय अपने युग एवं क्षेत्र की प्रचलित भाषा और व्याकरण के आधार पर उनमें परिवर्तन भी कर दिया। यही कारण है कि अर्धमागधी में लिखित आगम भी जब मथुरा में संकलित एवं सम्पादित हुए, तो उनका भाषिक स्वरूप अर्धमागधी की अपेक्षा शौरसेनी के निकट हो गया, और जब वलभी में लिखे गये तो वह महाराष्ट्री के प्रभावित हो गया। यह अलग बात है कि ऐसा परिवर्तन सम्पूर्ण रूप में न हो सका और उसमें अर्धमागधी के तत्त्व भी बने रहे। अतः अर्धमागधी और शौरसेनी आगमों में भाषिक स्वरूप का जो वैविध्य है, वह एक यथार्थता है, जिसे हमें स्वीकार करना होगा । "
क्या शौरसेनी आगमों के भाषिक स्वरूप में एकरूपता है?
डॉ० सुदीप जैन का दावा है कि “ आज भी शौरसेनी आगम साहित्य में भाषिक तत्त्व की एकरूपता है, जबकि अर्धमागधी आगम साहित्य में भाषा के विविध रूप पाये जाते हैं। उदाहरणस्वरूप शौरसेनी में सर्वत्र "ण" का प्रयोग मिलता है, कहीं भी "न" का प्रयोग नहीं है जबकि अर्धमागधी में नकार के साथ-साथ णकार का प्रयोग भी विकल्पतः मिलता है। यदि शौरसेनी युग में नकार का प्रयोग आगम भाषा में प्रचलित होता, तो दिगम्बर- साहित्य में कहीं तो विकल्प से नकार प्राप्त होता।" प्राकृतविद्या, जुलाई-सितम्बर, १९९६, पृ० ७.
यहाँ डॉ० सुदीप जैन ने दो बातें उठायी हैं, प्रथम शौरसेनी आगम- साहित्य की भाषिक एकरूपता की और दूसरी 'ण'कार और 'न'कार की। क्या सुदीपजी, आपने शौरसेनी आगम साहित्य के उपलब्ध संस्करणों का भाषाशास्त्र की दृष्टि से कोई प्रामाणिक अध्ययन किया है? यदि आपने किया होता तो आप ऐसा खोखला दावा प्रस्तुत नहीं करते? आप केवल णकार का ही उदाहरण क्यों देते हैं, वह तो महाराष्ट्री और शौरसेनी दोनों में सामान्य हैं। दूसरे शब्द - रूपों की चर्चा क्यों नहीं करते हैं? नीचे मैं दिगम्बर शौरसेनी आगमतुल्य ग्रन्थों से ही कुछ उदाहरण दे रहा हूँ, जिनसे उनके भाषिकतत्त्व की एकरूपता का दावा कितना खोखला है, यह सिद्ध हो जाता है। मात्र यही नहीं इससे यह भी सिद्ध होता है कि शौरसेनी आगमतुल्य ग्रन्थ न केवल अर्धमागधी से प्रभावित है, अपितु उससे परवर्ती महाराष्ट्री प्राकृत से भी प्रभावित हैं
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आत्मा के लिये अर्धमागधी में आता, अत्ता, अप्पा आदि शब्द रूपों के प्रयोग उपलब्ध हैं, जबकि शौरसेनी में घोषीकरण के कारण "आता" का " आदा" रूप बनाता है। 'समयसार' में “आदा" के साथ-साथ "अप्पा" शब्द-रूप, जो कि अर्धमागधी का है, अनेक बार प्रयोग में आया है, केवल 'समयसार' में ही
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