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८. अभिधानराजेन्द्रकोश, खण्ड ७, पृ० ११५७। ९. वही, खण्ड ६, पृ० ४६७। १०-११. वही, खण्ड ४, पृ० २१६१। १२. अभिधानराजेन्द्रकोश, श्रमणआवश्यकसूत्र-भयसूत्र, खण्ड ७, पृ० ११५७। १३. जैन साइकोलॉजी, पृ० १३१-१३४। १४. तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो, पृ० ४७। १५. दशवैकालिक, ८/३६। १६. वही, ८/३७। १७. योगशास्त्र, ४/१०-१८। १८. नैतिकता का गुरुत्वाकर्षण, पृ० २। १९. उत्तराध्ययन, ९/५४। २०. दशवैकालिक, ५/२/३५। २१. स्पीनोजा इन दी लाईट ऑफ वेदान्त, पृ० २६६। २२. स्पीनोजा नीति, ४/७। २३. दशवैकालिक, ८/३९। २४. (अ) नियमसार, ११५!
(ब) योगशास्त्र ८/२३। २५. धम्मपद, १/१६। २६. महाभारत, उद्योगपर्व, उद्धृत-धम्मपद, भूमिका, पृष्ठ ९. २७. नियमसार, ८१. २८. सूत्रकृतांग, १/४/१२-१३. २९. धम्मपद, ९-१०।। ३०. संयुक्तनिकाय, ३/३/३। ३१. वही, ४०/१३/१। ३२. सुत्तनिपात, ७/१। ३३. वही, ६/१४। ३४. छान्दोग्योपनिषद्, ७/२६/२। ३५. महाभारत शांतिपर्व, २४४/३१
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