________________
भद्रबाहु सम्बन्धी कथानकों का समीक्षात्मक
अध्ययन
चरम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु जैनधर्म की सभी परम्पराओं के द्वारा मान्य रहे। हैं। कल्पसूत्र स्थविरावलि के प्राचीनतम उल्लेख से लेकर परवर्ती ग्रन्थों के सन्दर्भो के आधार पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को लेकर आधुनिक युग में पर्याप्त उहापोह या विचार-विमर्श हुआ है, किन्तु उनके जीवनवृत्त और कृतित्व के सम्बन्ध में ईसा पूर्व से लेकर ईसा की पन्द्रहवीं शती तक लिखित विभिन्न ग्रन्थों में जो भी उल्लेख प्राप्त होते हैं, उनमें इतना मत वैभित्र्य है कि सामान्य पाठक किसी समीचीन निष्कर्ष पर पहुँच नहीं पाता है। भद्रबाहु के चरित्र लेखकों ने उनके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह अनुश्रुतियों एवं स्वैर कल्पनाओं का ऐसा मिश्रण है, जिसमें से सत्य को खोज पाना एक कठिन समस्या है। आर्य भद्र या भद्रबाहु नामक विविध आचार्यों के सम्बन्ध में जो कुछ अनुश्रुति से प्राप्त हुआ, उसे चतुर्दश पूर्वधर और द्वादशांगी के ज्ञाता श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भगवान् महावीर के सप्तम पट्टधर और दिगम्बर परम्परा के अनुसार अष्टम पट्टधर चरम श्रुतकेवली आर्य भद्रबाहु के साथ जोड़ दिया गया है। यही कारण है कि उनके जीवनवृत्त और कृतित्व के सम्बन्ध में एक भ्रमपूर्ण स्थिति बनी हुई है और अनेक परवर्ती घटनाक्रम और कृतियाँ उनके नाम के साथ जुड़ गई हैं।
___ ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में आर्य भद्रबाहु अथवा आर्यभद्र नामक अनेक आचार्य हुए हैं। परवर्ती लेखकों ने नाम साम्य के आधार पर उनके जीवन के घटनाक्रमों और कृतित्व को भी चरम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु के साथ जोड़ दिया। मात्र यही नहीं, कहीं-कहीं तो अपनी साम्प्रदायिक मान्यताओं को परिपुष्ट करने के लिये स्व कल्पना से प्रसूत अंश भी उनके जीवनवृत्त के साथ मिला दिये गये हैं। इस सम्बन्ध में आचार्य हस्तीमल जी ने अपने ग्रन्थ 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' भाग २, पृष्ठ ३२७ पर जो कुछ लिखा है, वह निष्पक्ष एवं तुलनात्मक दृष्टि से इतिहास के . शोधार्थियों के लिये विचारणीय है।
वे लिखते हैं- “भद्रबाहु के जीवन-चरित्रविषयक दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों का समीचीनतया अध्ययन करने से एक बड़ा आश्चर्यजनक तथ्य प्रकट होता है कि न श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में आचार्य भद्रबाह के जीवन चरित्र के सम्बन्ध में मतैक्य है और न दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में ही। भद्रबाह के जीवन सम्बन्धी दोनों परम्पराओं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org