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पुण्य की उपादेयता पर कैसे लगा प्रश्नचिह्न
वस्तुत: जब आचार्य उमास्वाति ने पुण्य और पाप को आस्रव का अंग मान लिया तो स्वाभाविक रूप से यह समस्या उत्पन्न हुई कि जिसका आस्रव होता है उसका बन्ध भी होता है और जिसका बन्ध होता है उसका विपाक भी होता है। इसप्रकार बन्ध
और विपाक की प्रक्रिया से भव-श्रमण की परम्परा चलती रहती है। पुन: जो भी भव-भ्रमण का हेतु होगा, वह उपादेय नहीं हो सकता।
इस प्रकार पुण्य को आस्रव रूप मानने के परिणामस्वरूप उसको हेय मानने की अवधारणा विकसित हुई। इस अवधारणा को आचार्य कुन्दकुन्द के इस कथन से अधिक बल मिला कि पुण्य और पाप दोनों ही बन्धन के हेतु होने से बेड़ी के समान ही हैं। फिर वह बेड़ी चाहे सोने की हो या फिर लोहे की हो, बन्धन का कार्य तो करती ही है। इस प्रकार जब पाप के साथ-साथ पुण्य को भी समतुला पर रखकर हेय मान लिया तो उसका परिणाम यह हुआ कि अध्यात्मवादी मुमुक्षु साधकों की दृष्टि में पाप के साथ-साथ पुण्य भी अनुपादेय बन गया और परिणाम स्वरूप वे परोपकार और लोकमंगल के कार्यों को भी बन्धन का निमित्त मानकर के उनकी उपेक्षा करने लगे। आचार्य कुन्दकुन्द ने तो पुण्य और पाप को क्रमश: सोने और लोहे की बेड़ी ही कहा था। किन्तु उनके परवर्ती टीकाकारों ने तो पुण्य-पाप दोनों को बन्धनका रूप कहकर उनकी पूर्णत: उपेक्षा करना प्रारम्भ कर दिया। पं० जयचंद जी छाबड़ा अपनी समयसार की भाषा वचनिका में लिखते हैं
पुण्य पाप दोय करम, बन्ध रूप दुई मानी।
शुद्ध आतम जिन लह्यो, न, चरण हित जानी।। इस प्रकार पाप के साथ-साथ पुण्य कर्म भी अनुपादेय मान लिये गये। चाहे पुण्य को आस्रव या बन्ध रूप मान भी लिया जाये फिर भी उसकी उपादेयता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। किन्तु सही समझ के लिये कर्मों के बन्धक और अबन्धक होने की स्थिति की तथा उनके शुभत्व-अशुभत्व एवं शुद्धत्व की समीक्षा अपेक्षित है। तीन प्रकार के कर्म
जैनदर्शन में 'कर्मणा बध्यते जन्तुः' की उक्ति स्वीकार्य रही है, लेकिन इसमें कर्म अथवा क्रियाएं समान रूप से बन्धनकारक नहीं हैं। उसमें दो प्रकार के कर्म माने गये हैं- एक को कर्म कहा गया है, दूसरे को अकर्म। समस्त साम्परायिक क्रियाएं अर्थात् राग-द्वेष एवं कषाय युक्त क्रियाएँ कर्म की कोटि में आती हैं और ईर्यापथिक कियाएँ अकर्म की कोटि में। नैतिक दर्शन की दृष्टि से प्रथम प्रकार के कर्म ही उचितअनुचित की कोटि में आते हैं और दूसरे प्रकार के कर्म नैतिकता के क्षेत्र से परे हैं।
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