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________________ अपभ्रंश के महाकवि स्वयम्भू : व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व महाकवि स्वयंभूदेव का अपभ्रंश साहित्य के कवियों में महत्त्वपूर्ण अवदान है। पुष्पदन्त ने उन्हें व्यास, भास, कालिदास, भारवी और बाण के समकक्ष कवि माना है। वे 'महाकवि', 'कविराज', 'कवि चक्रवर्ती' जैसी उपाधियों से सम्मानित थे। यद्यपि स्वयंभू की तीन महत्त्वपूर्ण कृतियाँ आज भी अविकल रूप से उपलब्ध हैं, फिर भी उनसे उनके जीवन के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी उपलब्ध होती है। उनकी इन कृतियों में उनके जन्म-स्थान, कुल, परम्परा, समय आदि के सम्बन्ध में बहुत कम सूचनाएँ प्राप्त हैं। जहाँ तक स्वयंभू के पारिवारिक जीवन का प्रश्न है, हमें मात्र इतनी ही जानकारी प्राप्त है कि उनके पुत्रों में एक पुत्र का नाम त्रिभुवनस्वयंभू था, जिसने अपने पिता की अधूरी कृति को पूर्ण किया था। इसके साथ ही स्वयंभू की कृतियों में उनके पिता मारुतदेव और माता पद्मनी उल्लेख मिलता है। उन्होंने यह भी कहा है कि उनकी माता पद्मनी पद्म के समान ही सुन्दर थीं। इन सामान्य सूचनाओं के अतिरिक्त उनकी वंश परम्परा आदि की विस्तृत जानकारी अप्राप्त है। स्वयंभू की दो पत्नियाँ थीं एक अमृताम्बा और दूसरी आदित्याम्बा। पण्डित नाथूराम प्रेमी ने उनकी तीसरी पत्नी सुअम्बा का भी अनुमान किया है, जो सम्भवतः उनके पुत्र त्रिभुवनस्वयंभू की माता थीं। स्वयंभू का काल ___ जहाँ तक स्वयंभू के समय का प्रश्न है उनकी कृतियों में कहीं भी रचनाकाल का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है फिर भी उन्होंने अपनी कृतियों में बाण, श्रीहर्ष, रविषेण आदि का स्मरण किया गया है, इससे कुछ अनुमान लगाया जा सकता है। रविषेण के पद्मचरित्र का रचनाकाल ई० सन् ६७७ माना जाता है। अत: इतना निश्चित है कि स्वयंभू ई० सन् ६७७ के पश्चात् ही हुए हैं। पुन: पुष्पदन्त ने अपने महापुराण में अपने पूर्ववर्ती कवियों में स्वयंभू का उल्लेख किया है। पुष्पदन्त के महापुराण का रचनाकाल ई० सन् ९६० है। अत: इतना निश्चित होता है कि स्वयंभू ई० सन् ६७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001687
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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