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________________ ४ परम्परा के ग्रन्थ भावसंग्रह में उन्हें उज्जैन के साथ जोड़ा गया है। " पुन्नाटसंघीय यापनीय हरिषेण ने अपने ग्रन्थ बृहत्कथाकोष (ई. ९३२) में भद्रबाहु के जीवनवृत्त का उल्लेख किया है— उनके अनुसार प्राचीन काल में पुण्ड्रवर्धन राज्य के कोटिपुर नगर में ( देवकोट्ट ) में राजपुरोहित सोमशर्मा की धर्मपत्नी सोमश्री की कुक्षि से भद्रबाहु का जन्म हुआ । किन्तु उन्होंने भी इस कोटिपुर को उज्र्ज्जयन्त पर्वत ( गिरनार ) के मार्ग में कहीं गुजरात में स्थित मान लिया है— जो भ्रान्ति है । ' वस्तुत: यह कोटिपुर न होकर कोटिवर्ष था, जो बंगाल में पुण्डवर्धन के समीप स्थित रहा होगा। कोटिवर्ष के भद्रबाहु के जन्म स्थान होने की सम्भावना हमें सत्य के निकट प्रतीत होती है, क्योंकि आगमों में भद्रबाहु के शिष्य गोदास से प्रारम्भ हुए गोदासगण की दो शाखाओं का नाम कोटिवर्षीया और पौण्ड्रवर्धनिका के रूप में उल्लिखित है । रत्ननंदी ने अपने भद्रबाहुकथानक में जन्म-स्थान और माता-पिता के नाम आदि के सम्बन्ध में प्रायः हरिषेण का ही अनुसरण किया है। रइधू ने अपने भद्रबाहुकथानक में माता-पिता और राजा आदि के नाम तो वही रखे किन्तु कोटिपुर को कउत्तुकपुर (कौतुकपुर) कर दिया है। " जन्म-स्थल एवं निवास क्षेत्र के इन समस्त उल्लेखों की समीक्षा करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वस्तुत: पाइन गोत्रीय श्रुतकेवली भद्रबाहु का जन्म-स्थल पौण्ड्रवर्धन देश का कोटिवर्ष नगर ही रहा है, किन्तु हरिषेण ने उसे जो गुजरात में स्थित माना, वह भ्रान्तिपूर्ण है। वस्तुतः यह नगर बंगदेश के उत्तर-पूर्व में और चम्पा ( आधुनिक भागलपुर) से दक्षिण-पूर्व में लगभग १०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित था । श्वेताम्बर आचार्यों ने प्रबन्धकोश आदि में जो उसे प्रतिष्ठानपुर से समीकृत किया है, वह भी भ्रान्त है। उसका सम्बन्ध नैमित्तिक भद्रबाहु, जो वराहमिहिर के भाई थे, से तो हो सकता है, किन्तु श्रुतकेवली भद्रबाहु से नहीं हो सकता है। जहाँ तक भद्रबाहु के विचरण क्षेत्र का प्रश्न है— श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार उनका विचरण क्षेत्र उत्तर में नेपाल के तराई प्रदेश से लेकर दक्षिण बंगाल के ताम्रलिप्त तक प्रतीत होता है। उनके द्वारा १२ वर्ष तक नेपाल की तराई में साधना करने का उल्लेख तित्थोगालीपइन्ना (तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक- लगभग ५वीं - ६ठी शती) एवं आवश्यक चूर्णी (७वीं शती) आदि अनेक श्वेताम्बर स्रोतों में प्राप्त होता है । १° यद्यपि दिगम्बर स्रोतों से इस सम्बन्ध में कोई सङ्केत उपलब्ध नहीं होता है, फिर भी इसकी प्रामाणिकता सन्देहास्पद नहीं लगती है। जहाँ तक उनकी दक्षिण यात्रा का प्रश्न है— इस सम्बन्ध में श्वेताम्बर स्रोत प्रायः मौन हैं, दिगम्बर स्रोतों में भी अनेक विप्रतिपत्तियाँ हैं । भावसंग्रह में आचार्य विमलसेन के शिष्य देवसेन ने श्वेताम्बर मत की उत्पत्ति के प्रसङ्ग में निमित्तशास्त्र के पारगामी आचार्य भद्रबाहु द्वारा उज्जयिनी में बारहवर्षीय दुष्काल की भविष्यवाणी का उल्लेख किया है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001687
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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