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आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष
निकलवाए, अपितु, जन-जन को राज्यादेशों के पालन हेतु प्रेरित भी किया और सम्पूर्ण गुजरात और उसके सीमावर्ती प्रदेश में एक विशेष वातावरण निर्मित कर दिया। उस समय की गुजरात की स्थिति का कुछ चित्रण हमें हेमचन्द्र के महावीरचरित में मिलता है। उसमें कहा गया है कि "राजा के हिंसा और शिकारनिषेध का प्रभाव यहाँ तक हुआ कि असंस्कारी कुलों में जन्म लेने वाले व्यक्तियों ने भी खटमल और जूं जैसे सूक्ष्म जीवों की हिंसा बन्द कर दी। शिकार बन्द हो जाने से जीव-जन्तु जंगलों में उसी निर्भयता से घूमने लगे, जैसे गौशाला में गाएँ। राज्य में मदिरापान इस प्रकार बन्द हो गया कि कुम्भारों को मद्यभाण्ड बनाना भी बन्द करना पड़ा। मद्यपान के कारण जो लोग अत्यन्त दरिद्र हो गए थे, वे इसका त्याग कर फिर से धनी हो गए। सम्पूर्ण राज्य मे द्यूतक्रीड़ा का नामोनिशान ही समाप्त हो गया।" इस प्रकार हेमचन्द्र ने अपने प्रभाव का उपयोग कर गुजरात में व्यसनमुक्त संस्कारी जीवन की जो क्रान्ति की थी, उसके तत्त्व आज तक गुजरात के जनजीवन में किसी सीमा तक सुरक्षित हैं। वस्तुत: यह हेमचन्द्र के व्यक्तित्व की महानता ही थी जिसके परिणामस्वरूप एक सम्पूर्ण राज्य में संस्कार क्रान्ति हो सकी। स्त्रियों और विधवाओं के संरक्षक हेमचन्द्र
यद्यपि हेमचन्द्र ने अपने 'योगशास्त्र' में पूर्ववर्ती जैनाचार्यों के समान ही ब्रह्मचर्य के साधक को अपनी साधना में स्थिर रखने के लिये नारी-निन्दा की है। वे कहते हैं कि स्त्रियों में स्वभाव से ही चंचलता, निर्दयता और कुशीलता के दोष होते हैं। एक बार समुद्र की थाह पायी जा सकती है किन्तु स्वभाव से कुटिल, दुश्चरित्र कामिनियों के स्वभाव की थाह पाना कठिन है। किन्तु इसके आधार पर यह मान लेना कि हेमचन्द्र स्त्री जाति के मात्र आलोचक थे, गलत होगा। हेमचन्द्र ने नारी जाति की प्रतिष्ठा और कल्याण के लिये जो महत्वपूर्ण कार्य किया उसके कारण वे युगों तक याद किये जायेंगे। उन्होंने कुमारपाल को उपदेश देकर विधवा और निस्सन्तान स्त्रियों की सम्पत्ति को राज्यसात किये जाने की क्रूर-प्रथा को सम्पूर्ण राज्य में सदैव के लिये बन्द करवाया और इस माध्यम से न केवल नारीजाति को सम्पत्ति का अधिकार दिलवाया, २ अपितु उनकी सामाजिक जीवन में प्रतिष्ठा भी की और अनेकानेक विधवाओं को संकटमय जीवन से उबार दिया। अत: हम कह सकते हैं कि हेमचन्द्र ने नारी को अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा प्रदान
की।
प्रजारक्षक हेमचन्द्र
हेमचन्द्र की दृष्टि में राजा का सबसे महत्त्वपूर्ण कर्तव्य अपनी प्रजा के
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