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आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष
आचार्य हेमचन्द्र भारतीय मनीषारूपी आकाश के एक देदीप्यमान नक्षत्र हैं। विद्योपासक श्वेताम्बर जैन आचार्यों में बहुविध और विपुल साहित्यस्रष्टा के रूप में आचार्य हरिभद्र के बाद यदि कोई महत्त्वपूर्ण नाम है तो वह आचार्य हेमचन्द्र का ही है। जिस प्रकार आचार्य हरिभद्र ने विविध भाषाओं में जैन विद्या की विविध विद्याओं पर विपुल साहित्य का सृजन किया था, उसी प्रकार आचार्य हेमचन्द्र ने विविध विद्याओं पर विपुल साहित्य का सृजन किया है। आचार्य हेमचन्द्र गुजरात की विद्वत् परम्परा के प्रतिभाशाली और प्रभावशाली जैन आचार्य हैं। उनके साहित्य में जो बहुविधता है वह उनके व्यक्तित्व की एवं उनके ज्ञान की बहुविधता की परिचायिका है। काव्य, छन्द, व्याकरण, कोश, कथा, दर्शन, अध्यात्म और योग-साधना आदि सभी पक्षों को आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी सृजनधर्मिता में समेट लिया है। धर्मसापेक्ष और धर्मनिरपेक्ष दोनों ही प्रकार के साहित्य के सृजन में उनके व्यक्तित्व की समानता का अन्य कोई नहीं मिलता है। जिस मोढ़वणिक जाति ने सम्प्रति युग में गाँधी जैसे महान व्यक्ति को जन्म दिया उसी मोढ़वणिक जाति ने आचार्य हेमचन्द्र को भी जन्म दिया था।
आचार्य हेमचन्द्र का जन्म गुजरात के धन्धुका नगर में श्रेष्ठि चाचिग तथा माता पाहिणी की कुक्षि से ई० सन् १०८८ में हुआ था। जो सूचनाएँ उपलब्ध हैं उनके आधार पर यह माना जाता है कि हेमचन्द्र के पिता शैव और माता जैनधर्म की अनुयायी थीं। आज भी गुजरात की इस मोढ़वणिक जाति में वैष्णव और जैन दोनों धर्मों के अनुयायी पाए जाते हैं। अत: हेमचन्द्र के पिता चाचिग के शैवधर्मावलम्बी और माता पाहिणी के जैनधर्मावलम्बी होने में कोई विरोध नहीं है क्योंकि प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में ऐसे अनेक परिवार रहे हैं जिसके सदस्य भिन्न-भिन्न धर्मों के अनुयायी होते थे। सम्भवत: पिता के शैवधर्मावलम्बी और माता के जैन-धर्मावलम्बी होने के कारण ही हेमचन्द्र के जीवन में धार्मिक समन्वयशीलता के बीज अधिक विकसित हो सके। दूसरे शब्दों में धर्मसमन्वय की जीवनदृष्टि तो उन्हें अपने पारिवारिक परिवेश से ही मिली थी।
आचार्य देवचन्द्र जो कि आचार्य हेमचन्द्र के दीक्षागुरु थे, स्वयं भी प्रभावशाली आचार्य थे। उन्होंने बालक चंगदेव ( हेमचन्द्र के जन्म का नाम ) की प्रतिभा को समझ लिया था, इसलिये उन्होंने उनकी माता से उन्हें बाल्यकाल में
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