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________________ प्रकाशकीय विद्यापीठ के निदेशक प्रोफेसर सागरमल जैन द्वारा लिखित शोध- निबन्धों के सार्वकालिक महत्त्व को देखते हुए लगभग तीन हजार पृष्ठों की सम्पूर्ण सामग्री को संगृहीत कर सागर जैन- विद्या भारती के रूप में लगभग दस खण्डों में प्रकाशित करने की हमारी योजना है। इस योजना के अन्तर्गत भाग - १ एवं भाग - २ पहले ही प्रकाशित हो चुके हैं। इसी क्रम में पार्श्वनाथ विद्यापीठ ग्रन्थमाला के ८८ वें पुष्प के रूप में सागर जैन- विद्या भारती का तृतीय भाग विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। प्रस्तुत संकलन में प्रोफेसर जैन के जिन प्रकाशित / अप्रकाशित लेखों का समावेश किया गया है वे हैं जैनधर्म में सामाजिक चिन्तन; अध्यात्म और विज्ञान; जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्म का पारस्परिक प्रभाव; आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष; सम्राट अकबर और जैनधर्म; जैनधर्म में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न, स्त्रीमुक्ति, अन्यतैर्थिक मुक्ति एवं सवस्त्र मुक्ति का प्रश्न; प्रमाण- लक्षण निरूपण में प्रमाण - मीमांसा का अवदान, पं० महेन्द्र कुमार 'न्यायाचार्य' द्वारा सम्पादित एवं अनूदित षड्दर्शन समुच्चय की समीक्षा; आगम साहित्य में प्रकीर्णकों का स्थान, महत्त्व, रचनाकाल एवं रचयिता; जैनधर्म और हिन्दूधर्म का पारस्परिक सम्बन्ध; युगीन परिवेश में महावीर स्वामी के सिद्धान्त; श्वेताम्बर मूलसंघ एवं माथुर संघ : एक विमर्श; जैन धर्म और आधुनिक विज्ञान; षट्जीव निकाय में त्रस और स्थावर जीव का वर्गीकरण एवं महायान सम्प्रदाय की समन्वयात्मक दृष्टि । ― इनमें से कुछ लेख 'श्रमण', 'सम्बोधि' आदि शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं, कुछ 'निर्ग्रन्थ' आदि में प्रकाशनाधीन हैं एवं कुछ प्रथम बार प्रकाशित हो रहे हैं। जिन पत्र-पत्रिकाओं से हमने उक्त प्रकाशित सामग्री ली है, उनके लेखकों / सम्पादकों के प्रति हम आभार व्यक्त करते हैं। आशा है, प्रोफेसर जैन के ये शोध निबन्ध जो जैन धर्म, दर्शन, इतिहास, साहित्य, विज्ञान आदि विषयों के विविध आयामों पर सशक्त प्रस्तुतियाँ हैं, शोधार्थियों के साथ-साथ सामान्य पाठकों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होंगे। इस ग्रन्थ की प्रूफ रीडिंग एवं प्रकाशन सम्बन्धी समस्त व्यवस्थाओं के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001686
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size14 MB
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