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________________ अध्यात्म और विज्ञान २९ . होगा तो शोषण और संग्रह की सामाजिक बुराइयाँ समाप्त होंगी। परिणामत: व्यक्ति आत्मिक शान्ति का अनुभव करेगा। अध्यात्मवादी समाज में विज्ञान तो रहेगा किन्तु उसका उपयोग संहार में न होकर सृजन में होगा, मानवता के कल्याण में होगा। । अन्त में पुन: मैं यही कहना चाहूँगा कि विज्ञान के कारण जो एक संत्रास की स्थिति मानव-समाज में दिखाई दे रही है उसका मूलभूत कारण विज्ञान नहीं अपितु व्यक्ति की संकुचित और स्वार्थवादी दृष्टि ही है। विज्ञान तो निरपेक्ष है। वह न अच्छा है और न बुरा। उसका अच्छा या बुरा होना उसके उपयोग पर निर्भर करता है और इस उपयोग का निर्धारण व्यक्ति के अधिकार की वस्तु है। अत: आज विज्ञान को नकारने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है उसे सम्यक् दिशा में नियोजित करने की। यह सम्यक् दिशा अन्य कुछ नहीं, सम्पूर्ण मानवता के कल्याण की व्यापक आकांक्षा ही है और इस आकांक्षा की पूर्ति अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय में ही है। काश, मानवता इन दोनों में समन्वय कर सके, यही कामना है। सन्दर्भ १. जे आया से विण्णाया, जे विण्णाया से आया। आचारांग १/५/५. २. आचारांग, १/१/१. ३. आत्मज्ञान और विज्ञान ( विनोबा ). ४. वही. ५. वही. ६. आचारांग १/३/४. ७. छान्दोग्योपनिषद् ७/३. ८. अप्पा खलु मित्तं अमित्तं च सुपट्ठिओ दुपट्टिओ। उत्तराध्ययन २०/३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001686
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size14 MB
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