________________
अध्यात्म और विज्ञान
२१
life ) देता है। आज हमारा दुर्भाग्य यही है कि जो एक दूसरे के पूरक हैं, उन्हें हमने एक दूसरे का विरोधी मान लिया। आज आवश्यकता इस बात की है कि इनकी परस्पर पूरक शक्ति या अभिन्नता को समझा जाये।
धर्म-शब्द के तीन अर्थ हैं -- १. स्वभाव, २. कर्त्तव्य और ३. साधना या उपासना की प्रक्रिया विशेष अथवा श्रद्धा-विशेष। अपने पहले अर्थ में वह विज्ञान से सम्बन्धित है। जहाँ धर्म वस्तु-स्वभाव है वहाँ विज्ञान वस्तु-स्वभाव ( Nature of things ) के अध्ययन करने की पद्धति है। अत: वे एक दूसरे से सम्बन्धित हैं। धर्म स्वभाव में जीना है और विज्ञान उस स्वभाव को पहचानना है। अत: विज्ञान के बिना धर्म असम्भव है। स्वभाव को जानकर ही जीया जा सकता है । विज्ञान हमें स्व-स्वभाव का बोध कराता है और धर्म विभाव से स्वभाव में आने की प्रक्रिया सिखाता है। धर्म अपने दूसरे और तीसरे अर्थ में अध्यात्म के निकट है और इस अर्थ में उसे विज्ञान निरपेक्ष कहा जा सकता है। क्योंकि कर्तव्य की अवधारणा भी विज्ञान-विहीन है। कर्त्तव्य भी व्यक्ति के स्वभाव और परिवेश के सन्दर्भ में ही निर्धारित होता है। किस परिस्थिति में किस व्यक्ति को क्या करना है - इसका निर्णय वैज्ञानिक दृष्टि पर ही निर्भर करता है। यद्यपि धर्म और विज्ञान में इस बात को लेकर अन्तर माना जाता है कि जहाँ धर्म श्रद्धाप्रधान है, वहाँ विज्ञान तर्कप्रधान है। किन्तु यह एक भ्रान्त धारणा है क्योंकि न तो विज्ञान श्रद्धा या आस्था का विरोधी है और न धर्म ही तर्क का विरोधी। विज्ञान में हम प्रारम्भ, परिकल्पना (Hypothesis ) या आस्था से करते हैं तो धर्म में तर्क को स्थान देकर उसे वैज्ञानिक बनाना चाहते हैं। अत: दोनों में विरोध नहीं है। आज धर्म को वैज्ञानिक (Scientific ) होना होगा और विज्ञान को धार्मिक।
__ पुन: धर्म को पारलौकिक और विज्ञान को आनुभविक ( ऐहिक ) माना जाता है, किन्तु यह भ्रान्त धारणा है। बुद्ध ने अपने उपदेश में अजातशत्रु को कहा था - मैं किसी पारलौकिक धर्म की बात नहीं कहता। मैं जिस धर्म को सिखाता हूँ, वह तो तात्कालिक है। क्रोध नहीं करने से जो शान्ति आती है - वह तो तात्कालिक है। आज धर्म को स्वर्ग और नरक के प्रलोभन और भय पर नहीं सिखाया जा सकता है। आज धर्म को ऐहिक जीवन से जोड़ना होगा, विज्ञान को परमार्थ (Transcendental) की खोज करनी होगी।
आज धर्म को कर्मकाण्ड से जोड़ लिया गया है, किन्तु अब समय आ गया है, जब विज्ञान की सहायता से इन कर्मकाण्डों की ऐहिक उपयोगिता को खोजना होगा। अब धर्म और विज्ञान समन्वित होकर ही मानव कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। आज धर्म कर्मकाण्ड और अन्ध श्रद्धा से इतना जुड़ गया
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org