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प्रमाण-लक्षण-निरूपण में प्रमाणमीमांसा का अवदान
२. वही, पृ० १७. ३. वही, पृ० १६-१७. ४. वही, भाषा-टिप्पणानि, पृ० १-१४३ तक. ५. प्रमाणं स्वपराभासि ज्ञानं वाधविवर्जितम्। न्यायावतार, १. ६. प्रमाणमविसंवादि ज्ञानमर्थक्रियास्थितिः। प्रमाणवार्तिक, २/१. ७. प्रमाणमविसंवादि ज्ञानम्। अष्टशती/अष्टसहस्री, पृ०१७५. ८. ( अ ) अनधिगतार्थाधिगमलक्षणत्वात्। वही.
( ब ) स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकज्ञानं प्रमाणम्। परीक्षामुख, १/१. ९. प्रमाणमीमांसा ( पं० सुखलालजी ), भाषाटिप्पणानि, पृ० ७. १०. ज्ञातव्य है कि प्रो० एम० ए० ढाकी के अनुसार 'न्यायावतार' सिद्धसेन की
रचना नहीं है, जैसा कि पं० सुखलालजी ने मान लिया था, अपितु उनके अनुसार यह सिद्धर्षि की रचना है। देखें - M. A. Dhaky's Article "The Date and Author of Nyāyāvatāra, Nirgrantha, Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre, Ahmedabad,
Vol. 1, 1995, p. 39. ११. प्रमाण-मीमांसा ( पं० सुखलालजी ), भाषाटिप्पणानि, पृ० ७. १२. वही ( मूलग्रन्थ और उसकी स्वोपज्ञ टीका ), १/१/३, पृ० ४. १३. वही, भाषाटिप्पणानि, पृ० ११. १४. देखें, वही, पृ० १२-१३. १५. वही ( मूलग्रन्थ एवं स्वोपज्ञ टीका ), १/१/४, पृ० ४-५. १६. वही, भाषाटिप्पणानि, पृ० १४.
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