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________________ 17 भगवान महावीर का जीवन और दर्शन रहें कि थेरगाथा के सारे "थेर" बौद्ध से और जैन यह समझते रहें कि "इसिभासियाई" के सारे ऋषि जैन थे, तो इससे बड़ी भ्रान्ति और कोई नहीं होगी । थेर गाथा में वर्द्धमान थेर हैं और यह वर्द्धमान थेर लिक्वी पुत्र हैं यह बात उसकी अट्ठकथा कह रही है, तो क्या हम यह माने कि वर्द्धमान बुद्ध का शिष्य या बौद्ध था। मित्रों हमारा जो प्राचीन साहित्य है वह उदार और व्यापक दृष्टि से युक्त है और महावीर ने जो हमको जीवन दृष्टि दी थी वह दृष्टि थी वैचारिक उदारता की । आपको मैंने अपने वक्तव्य के पूर्व में संकेत किया था कि महावीर और बुद्ध जिस काल में जन्में थे वह दार्शनिक चिन्तन का काल था । अनेक मत-मतांतर, अनेक दृष्टिकोण, अनेक विचारधारायें उपस्थित थीं । महावीर और बुद्ध दोनों के सामने यह प्रश्न था, मनुष्य इन विभिन्न दृष्टिकोणों में किसको सत्य कहे। महावीर ने कहा कि सभी बातें अपने-अपने दृष्टिकोण या अपेक्षा भेद से सत्य हो सकती है, इसलिए किसी को भी गलत मत कहो जबकि बुद्ध ने कहा कि तुम इन दृष्टियों के प्रपंच में मत पड़ो, क्योंकि ये दुःख विमुक्ति में सहायक नहीं हैं। -- एक ने इन विभिन्न दृष्टियों से ऊपर उठाने की बात कही तो दूसरे ने उन दृष्टियों को समन्वय के सूत्र में पिरोने की बात कही । सूत्रकृताङ्गसूत्र में महावीर कहते हैं - Jain Education International "सयं सयं पसंसंता गरहंता परं वयं । जे उ तत्थ विउस्संति संसारे ते विउस्सिया" ।। जो अपने-अपने मत की प्रशंसा करते हैं और दूसरे के मतों की निन्दा करते हैं और जो सत्य को विद्रूपित करते हैं वे संसार में परिभ्रमण करेगें । आज हमारे दुर्भाग्य से देश में धर्म के नाम पर संघर्ष हो रहे हैं। क्या वस्तुतः संघर्ष का कारण धर्म है ? क्या धर्म संघर्ष सिखाता है ! मित्रों मूल बात तो यह है कि हम धर्म के उत्स को ही नहीं समझते हैं, हम नहीं जानते हैं कि वस्तुतः धर्म क्या है ? हम तो धर्म के नाम पर आरोपित कुछ कर्मकाण्डों, कुछ रूढ़ियों या कुछ व्यक्तियों से अपने को बांध करके यह कहते हैं यही धर्म है। महावीर ने इस तरह के किसी भी धर्म का उपदेश नहीं दिया। महावीर ने कहा था कि "धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ" धर्म तो शुद्ध चित्त में रहता है। धर्म "उजुभूयस्स" चित्त की सरलता में है। वस्तुतः जहाँ सरलता है, सहजता है, वहीं धर्म है। धर्म है क्या ? महावीर ने कहा था कि "समियाए आयरिए धम्मे पव्वइये" समभाव में समत्व की साधना में ही आर्य जनों ने धर्म कहा है। महावीर कहते हैं कि जहाँ भी समत्व की साधना है, जहाँ भी व्यक्तियों को तनाव से मुक्त करने का कोई प्रयत्न है, वैयक्तिक जीवन और सामाजिक जीवन से तनाव और संघर्ष को समाप्त करने का कोई प्रयास है, वहीं धर्म है। ऐसा धर्म चाहे आप उसे जैन कहें, बौद्ध कहें, हिन्दू कहें वह धर्म, धर्म है और सभी महापुरुष धर्म के इसी उत्स का प्रवर्तन करते हैं । महावीर का जो जीवन और दर्शन है वह हमारे सामने इस बात को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करता है कि हम वैयक्तिक जीवन में वासनाओं से ऊपर उठें, अपने विकारों पर नियंत्रण का For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001684
Book TitleSagar Jain Vidya Bharti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size19 MB
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