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खजुराहो की कला
असहिष्णु और अनुदार होने के अनेक प्रमाण हमें उपलब्ध होते हैं। इन दोनों परम्पराओं का प्रभाव खजुराहो की कला पर देखा जाता है। जैन श्रमणों के सन्दर्भ में ये अंकन इसी प्रभाव के परिचायक हैं। सामान्य हिन्दू परम्परा और जैन परम्परा में सम्बन्ध मधुर और सौहार्दपूर्ण ही थे ।
पुनः जगदम्बी मन्दिर के उस फलक की, जिसमें क्षपणक अपने विरोधी के आक्रोश की स्थिति में भी हाथ जोड़े हुए हैं, व्याख्या जैन श्रमण की सहनशीलता और सहिष्णुता के रूप में भी की जा सकती है । अनेकांत और अहिंसा के परिवेश में पले जैन श्रमणों के लिए समन्वयशीलता और सहिष्णुता के संस्कार स्वाभाविक हैं और इनका प्रभाव खजुराहो के जैन मन्दिरों की कला पर स्पष्ट रूप देखा जाता है ।
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सन्दर्भ
दारचेडीओ य सालभंजियाओ य बालस्वए य लोमहत्थेणं पमज्जइ
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- राजप्रश्नीय (मधुकरमुनि ), 200
हरिवंशपुराण, 29 / 2-5 (अ) आदिपुराण, 6 / 181
(ब) खजुराहो के जैन मन्दिरों की मूर्तिकला, रत्नेश वर्मा, पृ. 56 से 62
प्रबोधचन्द्रोदय, अंक 3/6
(अ) पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 26 (ब) धूर्ताख्यान, हरिभद्र
(स) यशस्तिलकचम्पू (हन्डिकी), पृ. 249-253
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