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जैनधर्म और सामाजिक समता
25.
स्थानांगसूत्रम्, अभयदेवसूरिवृत्ति, (प्रकाशक-- सेठ माणेकलाल, चुन्नीलाल, अहमदाबाद, विक्रम संवत् 1994) सूत्र 3/202, वृत्ति, पृ. 154 से असइं उच्चागोए असई णीयागोए। णो हीणे णो अइरिते णो पीहए।। इतिसंखाय के गोथावादी, के माणावादी कंसि वा एगे गिज्झे? तम्हापंडिए णो हरिसे णो कुज्झे
- आचारांग, (सं.मधुकरमुनि)1/2/3/75 26. जैन शिलालेख संग्रह, भाग-2, संग्रहकर्ता-विजयमूर्ति, लेख क्रमांक 8,31,41,54,62,
67, 69 26अ. आवश्यकचूर्णि, जिनदासगणि, ऋषभदेव के सरीमल संस्था, रतलाम, भाग 1, पृ. 554
ब. भक्तपरिज्ञा, 128
स. तित्थोगालिअ, 777 27. आचारांग, सं. मधुकरमुनि, 1/2/6/102 26अ) स्थानांग, सं. कन्हैयालालजी कमल, 3/202 (ब) स्थानांग, अभयदेववृत्ति, पृ. 154-155
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