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अर्धमागधी आगमसाहित्य में समाधिमरण की अवधारणा
- प्रो. सागरमल जैन
अर्धमागधी आगमसाहित्य में समाधिमरण की अवधारणा का अति विस्तृत विवेचन उपलब्ध है। पौर्वात्य एवं पाश्चात्य विद्वानों ने अर्धमागधी आगमसाहित्य के ग्रन्थों का जो कालक्रम निर्धारित किया है, उसके आधार पर समाधिमरण से सम्बन्धित आगमों को हम निम्न क्रम में रख सकते हैं। अति प्राचीन स्तर के आगम ग्रन्थों में आचारांग एवं उत्तराध्ययन ये दो ऐसे ग्रन्थ हैं जिनमें समाधिमरण के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण मिलता है। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध का 'विमोक्ष नामक अष्टम अध्ययन विस्तार से समाधिमरण के तीन प्रकारों-- भक्त प्रत्याख्यान, इंगिनिमरण एवं प्रायोपगमन की विस्तृत चर्चा करता है। इसी प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र का पंचम "अकाम-मरणीय" अध्ययन भी अकाममरण और सकाम मरण (समाधिमरण) की चर्चा से सम्बन्धित है। इसके साथ ही किंचित परवर्ती माने गये उत्तराध्ययन के 36वें अध्ययन में भी समाधिमरण की विस्तृत चर्चा है। इसमें समयावधि की दृष्टि से उत्कृष्ट, मध्यम एवं जघन्य ऐसे तीन प्रकार के समाधिमरणों का उल्लेख है। प्राचीन स्तर के अर्धमागधी आगमों में दशवैकालिक का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके आठवें 'आचार-प्रणिधी नामक अध्ययन में समाधिमरण के पूर्व की साधना का उल्लेख हुआ है। इसमें कषायों को अल्प करने या उन पर विजय प्राप्त करने का निर्देश है।
इसके अतिरिक्त कालक्रम की दृष्टि से किंचित परवर्ती माने गये अर्धमागधी आगमों में तृतीय अंग आगम स्थानांगसूत्र के द्वितीय अध्ययन के चतुर्थ उद्देशक में मरण के विविध प्रकारों की चर्चा के प्रसंग में समाधिमरण के विविध रूपों के उल्लेख उपलब्ध होते हैं। चतर्थ अंग आगम समवायांग में मरण के सत्रह भेदों की चर्चा है। ज्ञातव्य है कि नाम एवं क्रम के कुछ अंतरों को छोड़कर मरण के इन सत्रह भेदों की चर्चा भगवतीआराधना में भी मिलती है। इसमें बालमरण, बाल-पण्डितमरण, पण्डितमरण, भक्त-प्रत्याख्यान, इंगिनिमरण, प्रायोपगमन आदि की चर्चा है। इसी प्रकार पाचवें अंग-आगम भगवतीसूत्र में अम्बड संन्यासी एवं उसके शिष्यों के द्वारा गंगा की बालू पर अदत्त जल का सेवन नहीं करते हुए समाधिमरण करने का उल्लेख पाया जाता हैं। सातवें अंग उपासकदशासूत्र में भगवान महावीर के 10 गृहस्थ उपासकों के द्वारा लिये गए समाधिमरण और उसमें उपस्थित विघ्नों की विस्तृत चर्चा मिलती है। आठवें अंग आगम अन्तगड़दशा एवं नवें अंग आगम अनुत्तरौपपातिक दशा में भी अनेक श्रमणों एवं श्रमणियों के द्वारा लिए गये समाधिमरण का उल्लेख मिलता है। अन्तकृदशा की विशेषता यह है कि उसमें समाधिमरण लेने वालों की समाधिमरण के पूर्व की शारीरिक स्थिति कैसी हो गई थी, इसका सुन्दर विवरण उपलब्ध है।
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