________________
अध्याय।
सुबोधिनी टीका।
[ ४७
अर्थ-इस लिये पहले जो गुणोंमें उत्पाद, व्यय, धोव्य बतलाया गया है, वह सब । प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे सिद्ध होनेसे निर्दोष है ।
अथ चैतल्लक्षणमिह वाच्यं वाक्यान्तरप्रवेशेन ।
आत्मा यथा चिदात्मा ज्ञानात्मा वा स एव चैकार्थः॥३७॥ अर्थ--अब गुणोंका लक्षण वावयान्तर (दूरी रीतिले) द्वारा कहते हैं । जिस प्रकार आत्मा, चिदात्मा, अथवा ज्ञानात्मा, ये सब एक अर्थको प्रगट करते हैं उसी प्रकार वह वाक्यान्तर कथन भी एकार्थक है ।
तद्वाक्यान्तरमेतद्यथा गुणाः सह वोपि चान्वयिनः।
अर्था धैकार्थत्वादादेकार्थवाचकाः सर्वे ॥ १३८ ॥
अर्थ---वह वाक्यान्तर इस प्रकार है-गुण, सहम वी, अन्वयी इन सबका एक ही अर्थ है । अर्थात् उपयुक्त तीनों ही शब्द गुण रूप अर्थके वाचक हैं ।
सहभावी शब्दका अर्थसह सार्धं च समं वा तत्र भवन्तीति सहभुवः प्रोक्ताः।
अयमों युगपत्ते सन्ति न पयोधवक्रमात्मानः॥ १३९॥ - अर्थमह, सार्ध और सम इ। तीनोंका एक ही साथ रूप अर्थ है । गुणसभी साथ २ रहते हैं इस लिये वे सहभावी कहे गये हैं । इसका यह अर्थ है कि सभी गुण एक साथ रहते हैं, पर्यायके समान क्रम क्रमसे नहीं होते हैं।
शङ्का और समाधानननु सह समं मिलित्वा द्रव्येण च सहभ्वो भवन्विति चेत्।
तन्न यतो हि गुणेभ्यो द्रव्यं पृथगिति यथा निषिद्धत्वात् ॥१४०॥
अथ-शंकाकार सहभावी शब्दका अर्थ करता है कि गुण द्रव्यके साथ मिलकर रहते हैं इसी लिये वे सहभावी कहलाते हैं। परन्तु शंकाकार की यह शंका निर्मूल है क्योंकि गुणोंसे भिन्न द्रव्य कोई पदार्थ है इस वातका पहले ही निषेध किया जाचुका है।
भावार्थ-सहभावी शब्दका यह अर्थ नहीं है कि गुण द्रव्यके साथ २ रहते हैं इस लिये सहभावी कहलाते हैं क्योंकि ऐसा अर्थ करनेसे द्रव्य जुदा पदार्थ ठहरता है और उस द्रव्यके साथ २ रहनेवाले गुण जुदे ठहरते हैं । परन्तु इस बातका पहले ही निषेध किया जा चुका है कि गुणोंसे भिन्न द्रव्य कोई जुदा पदार्थ है। इस लिये सहभावी शब्दका यह अर्थ करना चाहिये कि सभी गुण साथ २ रहते हैं । द्रव्य अनन्त गुणोंका अखण्ड पिण्ड है। उन गुणोंमें प्रतिक्षण परिणमन (पर्याय) होता रहता है । अनादिकालसे लेकर अनन्तकाल तक उन गुणों के जितने भी परिणमन होते हैं, उन सवोंमें गुण सदा साथ २ रहते हैं । गुणोंका परस्पर वियोग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org