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अध्याय ।
सुबोधिनी टीका ।
___ गुण-पर्यायका नामान्तरगुणपर्यायाणामिह केचिन्नामान्तरं वदन्ति बुधाः।
अर्थो गुण इति वा स्यादेकार्थादर्थपर्यया इति च ॥६२॥
अर्थ-कितने ही बुद्धिधारी गुणपर्यायोंका दूसरा नाम भी कहते हैं । गुग और अर्थ, ये दोनों ही एक अर्थवाले हैं इसलिये गुण पर्यायको अर्थपर्याय भी कह देते हैं।
. द्रव्य-पर्यायका नामान्तरअपि चोद्दिष्टानामिह देशांशैर्द्रव्यपर्ययाणां हि । व्यञ्जनपर्याया इति केचिन्नामान्तरं वदन्ति वुधाः ॥ ६३ ॥
अर्थ-देशांशोंके द्वारा जिन द्रव्यपर्यायोंका ऊपर निरूपण किया जा चुका है, उन द्रव्यपर्यायोंको कितने ही बुद्धिशाली व्यन्जनपर्याय, इस नामसे पुकारते हैं।
___ भावार्थ-प्रदेशवत्व गुणका परिणमन सम्पूर्ण द्रव्यमें होता है, इसलिये उक्त गुणके * परिणमनको द्रव्यपर्याय अथवा व्यन्जनपर्याय कहते हैं । .
शङ्काकारननु मोघमेतदुक्तं सर्व पिष्टस्य पेषणन्यायात् ।
एकेनैव कृतं यत् स इति यथा वा तदंश इति वा चेत् ॥६॥ .
अर्थ-उपर जितना भी कहा गया है, सभी पिष्ट पंषण है अर्थात् पीसे हुएको पीसा गया है। एकके कहनेसे ही काम चल जाता है, यातो द्रव्य ही कहना चाहिये अथवा पर्याय ही कहना चाहिये । द्रव्य और पर्यायको जुदा २ कहना निष्फल है ?
उत्तर.. सन्नैवं फलवत्त्वाद द्रव्यादेशादवस्थितं वस्तु।
पर्यायादेशादिदमनवस्थितमिति प्रतीतत्वात् ॥६५॥ .. अर्थ--उपर जो शङ्का की गई है वह ठीक नहीं है । द्रव्य और पर्याय दोनों का ही निरूपण आवश्यक है । द्रव्यकी अपेक्षासे वस्तु नित्य है। पर्यायकी अपेक्षासे वस्तु अनित्य है। इस बातकी प्रतीति दोनोंके कथनसे ही होती है। . भावार्थ-यदि द्रव्य और पर्याय दोनोंका निरूपण न किया जाय तो वस्तुमें कथंचित्. नित्यता और कथंचित् अनित्यताकी सिद्धि न हो सकेगी इसलिये दोनोंका ही निरूपण निष्फल नहीं, किन्तु सफल है। ,
* प्रदेशवत्व गुणके परिणमनको यदि गुणकी दृष्टिसे कहाजाय तो उसे गुणपर्याय भी कह सक्ते हैं।
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