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________________ १० ] पश्चाध्यायी । [ प्रथम अर्थ - जिस प्रकार सत्ताका प्रतिपक्ष असत्ता है उसी प्रकार और भी है। नाना रूपता एक रूपताका प्रतिपक्ष है । भावार्थ- द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नवकी अपेक्षासे सत्ता के दो भेद हैं । एक सामान्य सत्ता, और दूसरी सत्ता विशेष । सत्ता सामान्यका ही दूसरा नाम महासत्ता है, और सत्ता बिशेषका दूसरा नाम अवान्तर सत्ता है । महासत्ता अपने स्वरूपकी अपेक्षा से सत्ता है । परन्तु अवान्तर सत्ता की अपेक्षा से सत्ता नहीं है। इसी प्रकार अवान्तर सत्ता भी अपने स्वरूप की अपेक्षासे सत्ता है, किन्तु महासत्ताकी अपेक्षासे वह असत्ता है । हरएक पदार्थ में स्व-स्वरूप और परस्वरूपकी अपेक्षासे सत्ता और असत्ता रहती है । इसी लिये हरएक पदार्थ कथंचित सतरूप है, और कथंचित असत (अभाव) रूप है । सत्ता भी स्व-स्वरूप और परस्वरूपकी अपेक्षासे सत्, असत रूप उभय धर्म रखती है। . महासत्ता सम्पूर्ण पदार्थो की सम्पूर्ण अवस्थाओं में रहती है इसलिये उसे नानारूपा (अनेक रूपा ) कहा है । प्रतिनियत पदार्थों के स्वरूप सत्ता की अपेक्षासे अवान्तर सत्ताको एकरूपा कहा है और भी 1 एक पदार्थस्थितिरिह सर्वपदार्थस्थितोर्विपक्षत्वम् । धौव्योत्पादविनाशैस्त्रिलक्षणायास्त्रिलक्षणाभावः ॥ २१ ॥ अर्थ - एक पदार्थकी सत्ता, समस्त पदार्थोंकी सत्ताका विपक्ष है । उत्पाद, व्यय, प्रौव्य स्वरूप विलक्षणात्मक सत्ताका प्रतिपक्ष त्रिलक्षणाभाव ( अत्रिलक्षणा ) है | भावार्थ - यद्यपि समस्त वस्तुओं में भिन्नर सत्ता है, तथापि वह सब वस्तुओं में एक सरीखी है । इसलिये सामान्य दृष्टिसे सव पदार्थों में एक सत्ता कह दी जाती है । उसीको 'महासत्ता' * कहते हैं । उस महा सत्ताका प्रतिपक्ष एक पदार्थमें रहनेवाली सत्ता है । उसीको अवान्तर सत्ता कहते हैं । इस अवान्तर सत्तासे ही प्रति नियत पदार्थोंकी भिन्न २ व्यवस्था होती है । वस्तु उत्पत्ति, विनाश और धौम्य ये तीनों ही अवस्थायें प्रतिक्षण हुआ करती हैं । इन तीनों अवस्थाओंको धारण करनेवाली वस्तु ही सत् कहलाती है । इसलिये महासत्ता उत्पाद, व्यय, ator स्वरूप त्रयात्मक है । यद्यपि ये तीनों अवस्थायें एक समय में होनेवाली त्रिलक्षणात्मक पर्याय हैं । तथापि ये तीनों एक रूप नहीं हैं। जिस स्वरूपसे वस्तु में उत्पाद है, उससे धौन्य, विनाश नहीं है । और जिस स्वरूपसे विनाश है, उससे उत्पाद धौम्य नहीं है । जिस स्वरूप से 1 * यह महासत्ता केवल आपेक्षिक दृष्टिसे कही गई है । कोई स्वतन्त्र पदार्थ नहीं है । जैसा कि नैयायिक और वैशेषिक दर्शनवाले सव पदार्थों में रहनेवाली महासत्ताको एक स्वतन्त्र पदार्थ ही मानते है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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