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अध्याय । ]
सुबोधनी टीका ।
[ २२३
ग्रन्थकार नय प्रमाणको निक्षेपों पर घटाते हैं । पहले वे द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनों नयोंका विषय बतलावेंगे पीछे प्रमाणका विषय बतलावेंगे ।
द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयका विषय ।
तत्त्वमनिर्वचनीयं शुद्धद्रव्यार्थिकरूप भवति मतम् । गुणपर्ययवद्रव्यं पर्यायार्थिकनवस्य पक्षोऽयम् ॥ ७४७ ॥
अर्थ- -- तत्त्व अनिर्वचनीय है अर्थात् बचनके अगोचर है । यह शुद्ध द्रव्यार्थिक नय का पक्ष है । तथा तत्त्व (द्रव्य) गुण पर्यायवाला है यह पर्यायार्थिक नयका पक्ष है । भावार्थतत्त्वमें अभेदबुद्धिका होना द्रव्यार्थिक नय और उसमें भेदबुद्धिका होना पर्यायार्थिक नय है । प्रमाणका विषय
यदिदमनिर्वचनीयं गुणपर्ययवत्तदेव नास्त्यन्यत् ।
गुणपर्यवद्यदिदं तदेव तत्त्वं तथा प्रमाणमिति ॥ ७४८ ॥
अर्थ- - जो तत्त्व अनिर्वचनीय है वही गुण पर्यायवाला है, अन्य नहीं है तथा जो तत्त्वगुण पर्यायवाला है, वही तत्त्व है, यही प्रमाणका विषय है । भावार्थ- वस्तु सामान्य विशेषात्मक है । वस्तुका सामान्यांश द्रव्यार्थिकका विषय है। उसका विशेषांश पर्यायार्थिकका विषय हैं, तथा सामान्य विशेषात्मक - उभयात्मक वस्तु प्रमाणका विषय है । प्रमाण एक ही समयमें अविरुद्ध रीतिसे दोनों धर्मोको विषय करता है ।
भेद अभेद पक्ष-
यद्रव्यं तन्न गुणो योपि गुणस्तन्न द्रव्यमिति चार्थात् ।
पर्यायापि यथा स्याद्जुनयपक्षः स्वपक्षमात्रत्वात् ॥ ७४९ ॥ यदिदं द्रव्यं स गुणो योपि गुणो द्रव्यमेतदेकार्थात् । तदुभयपक्षे दक्षो विवक्षितः प्रमाणपक्षोऽयम् ॥ ७५० ॥
अर्थ — जो द्रव्य है, वह गुण नहीं है, जो गुण है वह द्रव्य नहीं है, तथा जो द्रव्य गुण है वह पर्याय नहीं है । यह ऋजुसूत्र नय ( पर्यायार्थिक ) का पक्ष है क्योंकि भेद पक्ष ही पर्यायार्थिक नयका पक्ष है । तथा जो द्रव्य है वही गुण है, जो गुण है वही द्रव्य है । गुण द्रव्य दोनोंका एक ही अर्थ है । यह अभेदपक्ष द्रव्यार्थिक नयका पक्ष है तथा भेद और अभेद इन दोनों पक्षों में समर्थ विवक्षित प्रमाण पक्ष है ।
पृथगादानमशिष्टं निक्षेपो नयविशेष इव यस्मात् । तदुहारणं नियमादस्ति नयानां निरूपणावसरे ॥७५१ ॥
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