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________________ सुबोधिनी टीका। विशेषात्मक हो । इसलिये सिद्ध होता है कि पदार्थ उभयात्मक है । (सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः) ऐसा सूत्र भी है, अर्थात् पदार्थके सामान्य अंशको विषय करनेवाला द्रव्यार्थिक नय है । उसके विशेषांशको विषय करनेवाला पर्यायार्थिक नय है। दोनों अंशोंको युगपत् (एक साथ) विषय करनेवाला प्रमाण ज्ञान है । उभयात्मक पदार्थ ही प्रमाणका विषय है। शङ्काकार--- ननु चास्त्येकविकल्पोप्यविरुद्धोभयविकल्प एवास्ति । कथमिव तदेकसमये विरुद्धभावद्वयोर्विकल्प: स्यात् ॥१६॥ अथ चेदस्ति विकल्पो क्रमेण युगपदा वलादाच्यः । अथ चेत् क्रमेण नय इति भवतिन नियमाप्रमाणमितिदोषः ॥६६८॥ युगपचेदथ न मिथो विरोधिनोयोगपद्यं स्यात् । __ दृष्टिविरुद्धत्वादपि प्रकाशतमसोईयोरिति चेत् ॥ ६६९॥ अर्थ-एक विकल्प भी अविरुद्ध उभय (दो) विकल्पवाला हो सक्ता है । अर्थात् अविरोधी कई धर्म एक साथ रह सक्ते हैं । परन्तु एक समयमें विरुद्ध दो भावोंका विकल्प किस प्रकार होसक्ता है ? यदि एक साथ विरुद्ध दो विकल्प होसक्ते हैं तो क्रमसे हो सक्ते हैं या एक साथ उन दोनोंका हट पूर्वक प्रयोग किया जासक्ता है ? यदि कहा जाय कि विरोधी दो धर्म क्रमसे होसक्ते हैं तो वे क्रमसे होनेवाले धर्म नय ही कहे जायेंगे, प्रमाण वे नियमसे नहीं कहे जासक्ते, यह एक बड़ा दोष उपस्थित होगा । यदि कहा जाय कि वे दोनों धर्म एक साथ होसक्ते हैं तो यह बात बनती नहीं, कारण विरोधी धर्म एक साथ दो रह नहीं सक्ते । दो विरोधी धर्म एक साथ रहें इस विषयमें प्रत्यक्ष प्रमाणसे विरोध आता है। जैसे प्रकाश और अन्धकार दोनों ही विरोधी हैं । वे क्या एक साथ रहते हुए कभी किसीने देखें हैं ? विरोधी धर्म भी एक साथ रह सक्त हैन यतो युक्तिविशेषाधुगपवृत्तिर्विरोधिनामस्ति । सदसदनेकेषामिह भावाभावधुवाध्रुवाणाच ॥ ६७० ॥ अर्थ...-ऊपर की हुई शङ्का ठीक नहीं है, कारण युक्ति विशेषसे विरोधी धर्मोकी भी एक साथ वृत्ति रह सक्ती है । सत् असत् , भाव अभाव, नित्य अनित्य, भेद अभेद, एक अनेक आदि अनेक धर्मोकी एक पदार्थमें एक साथ वृत्ति रहती है। भावार्थ-यद्यपि स्थल दृष्टिसे सत् असत आदि धर्म विरोधी प्रतीत होते हैं, परन्तु सूक्ष्म दृष्टिसे सापेक्ष विचार करनेपर जो विरोधी धर्म हैं वे भी अदिरोधी प्रतीत होने लगते हैं। अथवा यदि वे विरोधी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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