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________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रकी विषय-सूची। १० सो २ ११ १२ १ दि० श्वे० सूत्रोंका भेदप्रदर्शक कोष्टक, १४ २ वर्णानुसारी सूत्रानुक्रमाणका सम्बन्धकारिका। विषय पृष्ठ । विषय मंगल और ग्रंथकी उत्पत्तिका सम्बन्ध- १ | जिस प्रकार सूर्यके तेजको कोई आच्छादित मनुष्यका अन्तिम वास्तविक साध्य २ | (टैंक) नहीं सकता, उसी प्रकार तीर्थकर द्वारा मोक्ष-पुरुषार्थकीसिद्धिके लिये निर्दोष प्रवृत्ति उपदेश किये अनेकान्त सिद्धान्तको एकान्तवादी करो, जो यह न बने, तो यत्नाचारपूर्वक ऐसी . | मिलकर भी पराजित नहीं कर सकते, प्रवृत्ति करो, जो पुण्यबंधका कारण हो | भगवानमहावीरको नमस्कार, उनकी देशना-उपप्रवृत्ति करनेवाले मनुष्यों और उनकी प्रवृत्तियोंकी | देशका महत्त्व और वक्ष्यमाण विषयकी प्रतिज्ञा १० जघन्य मध्यमोत्तमता, औरन करनेवालेकी अधमता ३ | भगवानके वचनोंके एकदेश संग्रह करना भी उत्तमोत्तम पुरुष कौन है ? बड़ा दुष्कर है अरहंतदेवकी पूजाका फल और उसकी | संपूर्ण जिनवचनके संग्रहकी असंभवताका आगमआवश्यकता | प्रमाण द्वारा समर्थन अरहंतदेव जब कृतकृत्य हैं, तो वे उपदेश भी फलितार्थ किस कारण देते हैं ? १३ जिनवचन सुननेवाले और व्याख्यान करनेउपर्युक्त शंकाका समाधान वालोंकी फल-प्राप्ति वर्णन तीर्थकरकर्मके कार्यकी दृष्टान्त द्वारा स्पष्टता १३ अंतिम तीर्थंकर श्रीमहावीर भगवानका स्मरण ग्रंथका व्याख्यान करनेके लिये वक्ताओंको उत्साहित करना महावीर शब्दकी व्याख्या भगवानके गुणोंका वर्णन | वक्ताओंको सदा श्रेयो-कल्याणकारी मार्गका ही भगवानने जिस मोक्षमार्गका उपदेश किया। उपदेश देना चाहिए उसका संक्षिप्त स्वरूप, तथा उसका फल ९ । वक्तव्य विषयकी प्रतिज्ञा १४ १ प्रथम अध्याय। पृष्ठ मोक्षका स्वरूप १५ निर्देश, स्वामित्व आदि छह अनुयोगोंका स्वरूप २७ सम्यग्दर्शनका लक्षण १७ | १ सत्,२ संख्या ३ क्षेत्र, ४ स्पर्शन, ५ काल, ६ अन्तर, सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति जिस तरह होती है, उसके भाव और अल्पबहुत्व, आठ अनुयोगोंका स्वरूप ३१ दो हेतुओंका उल्लेख ज्ञानका वर्णन निसर्ग और अधिगम सम्यग्दर्शनका स्वरूप प्रमाणका वर्णन जीव अजीव आदि सात तत्त्वोंका स्वरूप २१ | परोक्षका स्वरूप और उसके भेदोंका वर्णन तत्त्वोंका व्यवहार किस तरह होता है ? | प्रत्यक्षका स्वरूप और उसके भेदोंका वर्णन नाम, स्थापना, द्रव्य और भावका स्वरूप मतिज्ञानके भेद जीवादिक पदार्थोके जाननेके और उपाय ,, का सामान्य लक्षण प्रमाण और नयका स्वरूप २६ । अवग्रह, ईहा, अपाय, धारणाका स्वरूप १४ २२ २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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