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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम
[दशमोऽध्यायः
उनका अल्पबहुत्व नहीं कहा जा सकता। पूर्वभावप्रज्ञापनीयनयकी अपेक्षा न्यूनाधिकताका वर्णन किया जा सकता है । इसमें जिन्होंने नपुंसकलिङ्गसे सिद्धि प्राप्त की है, उनका प्रमाण सब से कम है । जिन्होंने स्त्रीलिङ्गसे सिद्धि-लाभ किया है, उनका प्रमाण नपुंकलिङ्गसिद्धोंसे संख्यातगुणा है । स्त्रीलिङ्गसिद्धोंसे भी संख्यातगुणा प्रमाण उनका है, जिन्होंने पुल्लिङ्गसे सिद्धि प्राप्त की है।
तीर्थ अनयोगमें अल्प बहुत्वका प्रमाण इस प्रकार माना गया है, कि जो तीर्थकरसिद्ध हैं, वे सबसे थोड़े हैं । किन्तु उनसे संख्यातगुणा प्रमाण तीर्थकरके तीर्थ नोतीर्थकर सिद्धोंका है। तीर्थकरतीर्थसिद्धोंमें जो नपुंसकलिङ्गसे सिद्ध हुए हैं, उनका प्रमाण नोतीर्थकरसिद्धोंसे संख्यातगुण है । इनसे भी संख्यातगुणा प्रमाण उन तीर्थकर तीर्थसिद्धोंका है । जो स्त्रीलिङ्गसे सिद्ध हुए हैं । तथा इनसे भी संख्यातगुणा प्रमाण पुल्लिङ्गसे सिद्धि प्राप्त करनेवाले तीर्थकरतीर्थसिद्धोंका है।
भाष्यम्-चारित्रम्-अत्रापि नयौ द्वौ प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयश्च पूर्वभावप्रज्ञापनीयश्च । प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयस्य नोचारित्री नोअचारित्री सिध्यति । नास्त्यल्पबहुत्वम् । पूर्वभावप्रज्ञापनीयस्य व्यञ्जिते चाव्यञ्जिते च। अत्यञ्जिते सर्वस्तोकाः पञ्चचारित्रसिद्धाश्चतुश्चारित्रसिद्धाः संख्येयगुणास्त्रिचारित्रसिद्धाः संख्येयगुणाः । व्यञ्जिते सर्वस्तोकाः सामायिकच्छेदोपस्थाप्यपरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसंपराययथाख्यातचारित्रसिद्धा छेदोपस्थाप्यपरिहारविशुद्धि सूक्ष्मसंपराययथाख्यातचारित्रसिद्धाः संख्येयगुणाः, सामायिकच्छेदोपस्थाप्यसूक्ष्मसम्पराय. यथाख्यातचारित्रसिद्धाः संख्येयगुणाः, सामायिकपरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसम्पराययथाख्यातसिद्धाः संख्येयगुणाः, सामायिकसूक्ष्मसंपराययथाख्यातचारित्रसिद्धाः संख्येयगुणाः । छेदोपस्थाप्यसूक्ष्मसम्पराययथारख्यातचारित्रसिद्धाः संख्येयगुणाः।
अर्थ-चारित्र अनयोगसे सिद्धोंके अल्पबहुत्वका वर्णन करना हो, तो इस विषयमें भी दो नय प्रवृत्त हुआ करते हैं। एक प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीय और दूसरी पूर्वभावप्रज्ञापनीय । प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयकी अपेक्षा न चारित्रके द्वारा सिद्धि होती है, और न अचारित्रके द्वारा । अतएव इस विषयमें अल्पबहुत्व भी नहीं हो सकता । पूर्वभावप्रज्ञापनीयमें व्यञ्जित
और अव्यञ्जित इस तरह दो विकल्प हो सकते हैं। इनमें से अव्यञ्जितकी विवक्षा होनेपर जो पञ्चचारित्रसिद्ध हैं, उनका प्रमाण सबसे अल्प है, और चतुश्चारित्रसिद्धोंका प्रमाण उनसे संख्यातगणा है । तथा उनसे भी संख्यातगणा त्रिचारित्रसिद्धोंका प्रमाण है। इसी प्रकार व्यञ्जितकी अपेक्षा लेनेपर जो सामायिकसंयम छेदोपस्थाप्यसंयम परिहारविशुद्धिसंयम सूक्ष्मसंपरायसंयम और यथाख्यातसंयमके द्वारा सिद्ध हैं, उनका प्रमाण सबसे कम है। इनसे संख्यातगुणा प्रमाण उनका है, जोकि छेदोपस्थाप्यचारित्र परिहारविशुद्धिचारित्र सूक्ष्मसंपरायचारित्र और यथाख्यातचारित्रके द्वारा सिद्ध हुए हैं, और इनसे भी संख्यातगुणा प्रमाण उनका समझना चाहिये, जोकि सामायिकचारित्र छेदोपस्थाप्यचारित्र सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यातचारित्रके द्वारा
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