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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[सम्बंधज्ञानैः पूर्वाधिगतैरपतिपतितैर्मतिश्रुतावधिभिः ।
त्रिभिरपि शुद्धैर्युक्तः शैत्यद्युतिकान्तिभिरिवेन्दुः ॥१२॥ अर्थ-वे भगवान् मति श्रुत और अवधि इन तीन शुद्ध ज्ञानोंसे युक्त थे । अतएव वे ऐसे मालूम पड़ते थे, जैसे शीतलता द्युति और कमनीयता-आल्हादकता इन तीन गुणोंसे युक्त चन्द्रमा हो। भगवान्के ये तीनों ही गुण पूर्वाधिगत---पूर्व जन्मसे ही चले आये हुए और अप्रतिपाती---केवलज्ञान होने तक न छूटनेवाले थे।
भावार्थ--भगवान् जब गर्भमें आते हैं, तभीसे वे तीनै ज्ञानोंसे युक्त रहा करते हैं । उनका अवधिज्ञान देवोंके समान भवप्रत्यय होता है । उसके सम्बन्धसे उनका मतिज्ञान और श्रुतज्ञान भी उसी प्रकार विशिष्ट रहा करता है । उनके ये ज्ञान केवलज्ञानको उत्पन्न करके ही नष्ट होते हैं।
शुभसारसत्त्वसंहननवीर्यमाहात्म्यरूपगुणयुक्तः।
जगति महावीर इति त्रिदशैर्गुणतः कृताभिख्यः॥ १३ ॥ अर्थ--वे भगवान् शुभ सार-सत्त्व-संहनन-वीर्य-माहात्म्य और रूप आदि गणोंसे युक्त थे, अतएव देवोंने गुणोंके अनुसार जगत्में उनका " महावीर" यह नाम रखकर प्रसिद्ध किया।
भावार्थ--भगवान्का “ महावीर" यह इन्द्रका रक्खा हुआ नाम अन्वर्थ है। क्योंकि इस नामके अर्थके अनुसारही उनमें सार-सत्व आदि गुण भी पाये जाते हैं।
शरीरकी स्थिरताकी कारणभूत शक्तिको सार कहते हैं। सत्त्व नाम पराक्रमका है। संहनन नाम हड्डीका या उसकी दृढ़ताका है । वर्यि नाम उत्साह शक्तिका है । जिसके द्वारा आत्माकी महत्ता-उत्कृष्टता प्रकट हो ऐसी शक्तिको या उस गुणको माहात्म्य कहते हैं। चक्षुक द्वारा दीखनेवाले गुणको रूपं कहते हैं ।
स्वयमेव बुद्धतत्त्वः सत्वहिताभ्युद्यताचलितसत्त्वः । अभिनन्दितशुभसत्त्वः सेन्ट्रलॊकान्तिकैर्देवैः ॥ १४ ॥
१--मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान, इन तीनोंका स्वरूप आगे चल कर ग्रंथमें ही लिखा है । २-तीर्थकरोंका नाम-निर्देश इंद्र किया करता हैं । ३ --हड्डीकी दृढ़ताकी तरतमता और बंधन विशेषकी अपेक्षा संहनन छह प्रकारका माना है, उसके भेदोंका आगे उल्लेख किया जायगा । तीर्थंकरोंके सर्वोत्कृष्ट शुभ संहनन होता है, उसको वज्रषभनाराचसंहनन कहते हैं । अर्थात् उनका वेष्टन कीली और हड्डी वज्रके समान दृढ़ हुआ करती है । ४--भगवानके शरीरमें लक्षण और व्यंजन मिलाकर एक हजार आठ चिन्ह होते हैं, जो उनकी महत्ताको प्रकट करते हैं। ५-उनका रूप अतुल-अनुपम हुआ करता है।
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