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________________ 52/श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य श्रावक के १२ व्रतों का वर्णन किया गया है। किन्तु उनमें अनर्थदंड, दिग्व्रत और भोगोपभोगव्रत इन तीन को गुणव्रत तथा सामायिक, पोषध, अतिथिसंविभाग और सल्लेखना इन चार को शिक्षाव्रत कहा है। अन्त में मद्य, मांस, मधु, द्यूत, रात्रिभोजन और वेश्यासंग के त्याग का विधान किया है। इस कृति के संक्षिप्त वर्णन से दो बातें स्पष्ट होती हैं - गुणव्रतों और शिक्षाव्रतों की विभिन्नता और सप्तव्यसनों या मूलगुणों का कोई उल्लेख न करके मद्यादि छह निन्द्य कार्यों के त्याग का विधान। इससे ज्ञात होता है कि उनके समय तक शेष व्यसनों के सेवन का कोई प्रचार नहीं था। पुरूषार्थसिद्धयुपाय ___ इस ग्रन्थ के प्रणेता आचार्य अमृतचन्द्र है जिन्होंने कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थों पर विशद टीकाएँ रची है। उनकी यह कृति' संस्कृत के २२६ श्लोकों में रची गई है। इस कृति का रचनाकाल विक्रम की १० वीं शताब्दी है। यह ग्रन्थ श्रावकाचार की दृष्टि से अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इसके प्रारम्भ में 'परमज्योति की जय हो' ऐसा कहकर अनेकान्त को नमस्कार किया गया है। उसके बाद वक्ता और श्रोता का स्वरूप बताया है। इसके उपरान्त उपदेश देने का क्रम, सम्यक्त्व के भेद-प्रभेद-प्रकार, बारहव्रत, व्रतों के अतिचार, बारह प्रकार का तप, छः आवश्यक, तीन गुप्ति, पाँच समिति, दस धर्म, बारह भावनाएँ, परीषह, बन्ध के कारण, हिंसा-अहिंसा का स्वरूप इत्यादि विषयों का आलेखन हुआ है। इस कृति की विशेषता हैं कि इसमें सभी व्रतों और अणुव्रतों को अहिंसा व्रत में गर्भित बताया है और अहिंसा व्रत की विस्तृत व्याख्या की हैं। इसका अपरनाम 'जिनप्रवचनरहस्यकोश' और 'श्रावकाचार' भी है। आशाधरजी ने धर्मामृत की स्वोपज्ञ टीका में इस कृति के कई पद्य उद्धृत किये हैं। टीकाएँ - इस पर अज्ञातकर्तृक टीका है। पण्डित टोडरमल ने इस ' (क) इस ग्रन्थ की प्रथम आवृत्ति ‘रायचन्द्र जैन ग्रन्थमाला' से वी.सं. २४३१ में और चौथी वी.सं. २४७६ में प्रकाशित हुई है। यह कृति पंडित टोडरमलजी कृत भाषाटीका के हिन्दी अनुवाद सहित वि.सं. २०२६ में, श्री ब्र. दुलीचन्दजी जैन ग्रन्थमाला सोनगढ़ (सौराष्ट्र) से प्रकाशित हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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