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________________ 666/विविध विषय सम्बन्धी साहित्य समवसरणस्तवः 'समवसरणस्तव' नामक यह रचना' धर्मघोषसूरि की है और जैन महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इसमें कुल २४ गाथाएँ हैं। इस कृति का रचनाकाल १४ वीं शताब्दी का पूर्वार्ध माना जाता है। यह कति मख्यतः समवसरण की रचना विधि से सम्बन्धित है। इसमें समव- सरण की रचना किसके द्वारा, किस क्रम से और किस विधिपूर्वक की जाती है यह बताया गया है। इसके साथ ही समवसरण का परिमाण, चौबीस तीर्थंकरों के समवसरणों के वृक्षों का परिमाण, चैत्य वृक्षों के नाम इत्यादि का निरूपण भी किया गया है। यह रचना देवकृत होती है। इस रचना के अन्तर्गत आने वाले विधानों की सूची इस प्रकार है- १. वायुकुमार देवों द्वारा भूमि को शुद्ध करने की विधि, २. मेधकुमार देवों द्वारा भूमि को सुगन्धित करने की विधि, ३. अग्निकुमार देवों द्वारा धूप खेने (उत्क्षेपण) की विधि, ४. भवनपति-ज्योतिष एवं वैमानिक देवो द्वारा तीन गढ़ बनाने की विधि, ५. व्यन्तर देवों के द्वारा तोरण-चैत्य-वृक्ष-सिंहासन छत्र-यान आदि विन्यास करने की विधि, ६. बारह प्रकार की पर्षदा द्वारा प्रवेश करने, खड़े रहने एवं बैठने की विधि इत्यादि। टीका - इस कृति पर संक्षिप्त अवूचरि भी लिखी गई है, किन्तु टीकाकार का नाम उपलब्ध नहीं होता है। बालावबोध - शान्तिचंद्रगणि के शिष्य रत्नचन्द्र मुनि द्वारा इस कृति का बालावबोध रचा गया है। जिनरत्नकोश (पृ. ४१६-२०) में समवसरण शब्द से प्रारंभ होने वाली एवं समवसरण रचना विधि से सम्बन्धित कुछ कृतियों का निर्देश हुआ है। उनमें से निम्नलिखित कृतियों के रचयिताओं के नाम नहीं दिये गये हैं। यथेष्ट साधनों के अभाव में उन रचनाकारों के नामों का निर्धारण करना भी शक्य नहीं हैं, परन्तु इतना अवश्य है कि ये कृतियाँ समवसरणरचनाविधि से सम्बन्धित हैं। उन अज्ञातकर्तृक कृतियों के नाम ये हैं - १. समवसरणप्रकरण - इसमें प्राकृत की ७१ गाथाएँ हैं, २. समवसरण तपोविधि, ३. समवसरणपंचाशिका, ४. समवसरणपूजा, ५. समवसरणस्तव- अवचूरि सहित, ६. समवसरणस्तोत्रसावचूरि समवसरणविधि विषयक अधोलिखित आठ कृतियाँ भी उल्लेखनीय हैं। ये कृतियाँ प्रायः अप्रकाशित हैं, किन्तु इनके रचनाकारों के नाम प्राप्त होते हैं। ' यह कृति वि.सं. १६६७ में, 'जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर' से प्रकाशित हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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