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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/547 यह कृति नवीनतमरूप से ३१ परिशिष्टों में विभक्त है। इसमें चन्द्रसूरि रचित अद्भुतपद्मावतीकल्प, इन्द्रनन्दि का पद्मावतीपूजन, जिनप्रभसूरि की पद्मावती चतुष्पदिका, बप्पभट्टसूरि का सरस्वतीकल्पः, धराचार्य का पद्मावतीस्तोत्र, श्री जिनश्वर सूरि की अम्बिका स्तुति इत्यादि कई स्तवन-स्तोत्र-यन्त्र-पूजादि संकलित है। इसके साथ ही इस ग्रन्थ में अनेकविध चित्रादि-यंत्रादि उल्लिखित हैं। उनमें माँ ज्वालामालिनी अंबिकादेवी, महालक्ष्मी, ब्रह्मशांतियक्ष, कपर्दियक्ष, पाटण नगर में विराजित पद्मावती की मूर्ति, श्री शत्रुजयतीर्थ पर श्रीपूज्य की ट्रंक में प्रतिष्ठित पद्मावतीमूर्ति, बीजाक्षरमंत्र अर्ह, बीजाक्षरमंत्र ऐं आदि के चित्र तथा स्त्री-आकर्षणयंत्र, वशीकरणयंत्र, क्षोभनयंत्र, सुंदरीसाधनायंत्र, पार्श्वयक्ष की आराधना का यंत्र, अंबिकादेवीयंत्र, पद्मावतीदेवी आराधना का यंत्र, ज्वालामालिनीयंत्र आदि प्रमुख हैं। निःसन्देह यह कल्प अपनी विधा का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। ग्रन्थकार ने ज्वालिनीकल्प, नागकुमारचरित्र, महापुराण' और सरस्वतीमंत्रकल्प आदि ग्रन्थ भी लिखे हैं। टीका- इस ग्रन्थ पर बन्धुषेण ने एक विवरण लिखा है वह संस्कृत में है। इसका प्रारम्भ एक श्लोक से होता है, अवशिष्ट ग्रन्थ गद्य शैली में है। इसमें कुछ मंत्र तथा मंत्रोद्धार भी उल्लिखित हैं। भक्तामरस्तोत्र श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों परम्पराओं का यह सर्वमान्य स्तोत्र है। इसके कर्ता मानतुंगाचार्य है। इसकी रचना लगभग ७ वीं शती में हुई है। यह संस्कृत के ४४ या ४८ श्लोक परिमाण एक लघुकृति है। इस रचना में मूलतः प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव प्रभु की स्तुति की गई है। यह स्तोत्र जैन धर्म की शासन प्रभावना के निमित्त रचा गया था। इस स्तोत्र की निर्माण कथा जगप्रसिद्ध है। यद्यपि भक्तामरस्तोत्र स्तुति प्रधान कृति है, तथापि इस स्तोत्र का प्रत्येक पद्य विशिष्ट प्रकार की शक्ति, गुण एवं ऊर्जा से युक्त हैं। प्रत्येक पद्य का अपना-अपना प्रभाविक कार्य है; जैसे कि ५ वाँ श्लोक बुद्धि बढ़ाने वाला है, ३८ वाँ गजभय से मुक्ति दिलाने वाला है, ३६ वाँ सिंहभय से मुक्त करने वाला है, ४१ वाँ सर्पभय को दूर करने वाला है, ४२ वा शत्रुभय का नाश करने वाला है, ४५ वाँ रोग की शान्ति करने वाला है, ४६ वाँ कारागार का विच्छेद करने वाला है इत्यादि। ज्ञातव्य यह है कि इन श्लोकों का प्रभाव या चमत्कार विधियुक्त ' इसे त्रिषष्टिमहापुराण तथा त्रिषष्टिशलाकापुराण भी कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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