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538 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
आठवें प्रकरण में ड्रींकार ध्यान की विधि वर्णित है। ह्रींकार में चौबीस तीर्थंकरों की स्थापना है तथा इसका ध्यान मुखकमल पर करना चाहिए। नौवें प्रकरण में ध्यान की विधि, जाप के प्रकार आदि का उल्लेख है। दसवें प्रकरण में आसन पर विचार किया गया हैं। इसमें लिखा है कि ध्यान में अनुकूल आसन होना चाहिये। आसन चौरासी प्रकार के कहे गये हैं। उनमें से जो आसन गृहस्थ के लिए उपयोगी है ऐसे नौ आसन विधिवत् निर्दिष्ट किये गये हैं। ग्यारहवें प्रकरण में ध्यान करने वाले साधक में क्या-क्या योग्यताएँ होनी चाहिए उसका वर्णन है। बारह से लेकर पन्द्रहवें प्रकरण तक पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत ये चार प्रकार के ध्यान बताये गये हैं और इनका महत्त्व भी प्रतिपादित किया है। सोलहवें प्रकरण में धर्मध्यान के चार भेदों का स्वरूप कहा गया है। सत्रहवें प्रकरण में मन्त्र की साधनाविधि तथा किस अभीष्ट को प्राप्त करने के लिए कब कौनसा मन्त्र जाप करना चाहिए उसका निरूपण है ।
तदनन्तर नवकारमंत्र का छंद, वृद्धनवकार और मन्त्रसूची का उल्लेख किया है। इस कल्प में चौबीस जिन की स्थापना, आवृत्त गिनने के चित्र, शंखावृत्त, नन्दावृत्त ऊँवृत्त, ऊँवृत्त (२), नवपदवृत्त, ह्रींवृत्त गिनने के चित्र, सिद्धशिला एवं चौबीस जिन स्थापना की भावना का चित्र, ऊँ में चौबीस जिन, ह्रीं में चौबीस जिन, ऊँ में पंच परमेष्ठी आदि तेरह चित्रादि दिये गये हैं जो इस कृ ति की विशिष्ट देन है। निःसंदेह यह कल्प लघु होने पर भी विशिष्ट सामग्री प्रस्तुत करता है।
परमेष्ठिविद्यायन्त्रकल्प
यह कल्प सिंहतिलकसूरि द्वारा रचित है। यह रचना संस्कृत भाषा के ७८ पद्यों में निबद्ध है। इस कल्प के कुछ पद्य अनुष्टुप छंद में है और अधिक पद्य आर्यावृत्त में हैं। इस कल्प का रचनाकाल १४ वीं शती का पूर्वार्ध है। प्रस्तुत कल्प अपने नाम के अनुसार मुख्यतः परमेष्ठिविद्या से सम्बन्धित यंत्र-आलेखन-विधि को विवेचित करता है । किन्तु कृति का अवलोकन करने पर यह ज्ञात होता हैं कि इसमें तत्सम्बन्धी अन्य विधि-विधान भी प्रतिपादित हैं। इस कल्प के प्रारम्भ में मंगलाचरण एवं ग्रन्थनियोजन रूप एक पद्य है उसमें भगवान महावीरस्वामी एवं विबुधचन्द्रसूरि ( सिंहतिलकसूरि के गुरु) को नमस्कार करके 'परमेष्ठि विद्या' विषयक यन्त्र के वर्णन करने का भाव प्रगट किया है।
इस कृति में निर्दिष्ट विधान एवं तत्सम्बन्धी विषयवस्तु का नामनिर्देश निम्नांकित है। १. परमेष्ठीविद्या संबंधी यन्त्र आलेखन विधि इसका प्रथम प्रकारअष्टकमल युक्त पत्र से सम्बन्धित है और द्वितीय प्रकार - चतुः कमल युक्त पत्र से
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