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________________ 526/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य से ही चले जाते हैं। हौंकार मन्त्र का विधिपूर्वक चिंतन करने से चिंतामणी के समान सर्व अभीष्ट कार्य सिद्ध हो जाते हैं, पुत्र रहित को पुत्र की प्राप्ति हो जाती है, निर्धन कुबेर के समान धनी बन जाता है सेवक स्वामी और दुखी सुखी बन जाता है। प्रस्तुत कृति के अंत में यह भी कहा गया है कि जो मनुष्य ह्रींकार बीज का तीनों सन्ध्याओं में विधिपूर्वक ध्यान करता है उसके चरणों में आठ सिद्धियाँ विवश होकर नित्य लौटती हैं और वह क्रमशः मोक्षपद को प्राप्त करता है। ऋषिमंडलमंत्रकल्प जैन परम्परा की साधना पद्धति में ऋषिमंडल का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रस्तुत कृति विद्याभूषणसूरि द्वारा रचित है। इसमें ऋषिमंडल से संबंधित मंत्र-तंत्र और यंत्र संग्रहीत हैं। ऋषिमण्डल से संबंधित अन्य आचार्यों की कृतियाँ भी इसमें उपलब्ध होती है। ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम् सिंहतिलकसूरि रचित यह कृति संस्कृत पद्य में है।' इसके ३६ श्लोक हैं। प्रस्तुत कृति के नाम से ऐसा सूचन मिलता है कि इसमें केवल यन्त्रालेखन का विधान होना चाहिए, परन्तु इस कृति में यन्त्रालेखन-विधि एवं यंत्र-आराधना-विधि के उपरांत यंत्र के भेद-प्रभेद की भी चर्चा की गई हैं। इस स्तोत्र का रचनाकाल १३ वीं शती का पूर्वार्ध है। यह स्तोत्र ऋषिमंडलस्तोत्र के आधार पर रचा गया है। जहाँ 'ऋषिमंडलस्तोत्र' में यंत्र रचना के विषय में अस्पष्ट निर्देश है वह सिंहतिलकसूरि की इस रचना से स्पष्ट हो जाता है। ऋषिमंडलस्तोत्र के रचनाकार ने तीर्थंकरों की महिमा से सम्बन्धित ४६ श्लोक (३१ से ७६ पर्यन्त) कहे हैं उस विस्तृत विषय को सिंहतिलकसूरि ने एक श्लोक में ही संग्रहीत कर दिया है इसी प्रकार ऋषिमंडलस्तोत्र के ६८ श्लोकों को सिंहतिलकसूरि ने ३६ श्लोकों में समाविष्ट किया है। इस रचना के प्रारम्भ में मंगल रूप एवं प्रयोजन रूप एक श्लोक दिया गया है उसमें वर्द्धमानस्वामी का ध्यान करके ऋषिमण्डलस्तोत्र के अनुसार यंत्र आलेखन विधि कहने की प्रतिज्ञा की गई है। मूलतः इस कृति में छः विषयों पर प्रकाश डाला गया है। पहले अधिकार में मंगलादि की चर्चा है दूसरे अधिकार में यन्त्र स्वरूप और उसकी आलेखन विधि प्रतिपादित है। इसके अन्तर्गत यन्त्र ' (क) इस 'स्तव' का हिन्दी अनुवाद श्री धुरंधरविजयगणि ने किया है। (ख) इसका प्रकाशन श्री नवीनचंद्र अंबालाल शाह, जैन साहित्य विकास मण्डल, विलेपारले मुंबई, वि.सं. २०१७ में हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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