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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/479 १. सुगन्धदशमी व्रत कथा २. सुगंधदशमी व्रत करने वाले आराधकों के लिए व्रत के दिन करने योग्य जाप मंत्र एवं उसकी विधि ३. सुगन्ध दशमी व्रत का माहात्म्य ४. सुगन्ध दशमी मंडल का विधान इस विधान में मुख्य रूप से निम्न पूजाएँ होती हैं ४.१ चतुर्विंशति तीर्थंकरों की समुच्चय (अष्टप्रकारी) पूजा ४.२ प्रथम वलय में षट्कर्म की पूजा ४.३ द्वितीय वलय में षट्कर्म के पापारंभ त्याग की पूजा ४.४ तृतीय वलय में षट्आवश्यक धारक पूजा ४.५ चतुर्थ वलय में बाह्यषट् तप धारक पूजा ४.६ पंचम वलय में षट् आभ्यान्तर तप धारक पूजा ४.७ षष्टम वलय में लेश्या परिहारक पूजा ४.८ सप्तम वलय में षट् जीवनिकाय रक्षक पूजा ४.६ अष्टम वलय में षद्रव्य परिचायक जिनपूजा ४.१० नवम वलय में षट् अनायतन त्याग पूजा ४.११ दशम वलय में षट्रस दोष निवारणार्थ पूजा की जाती है। प्रस्तुत कृति के अन्त में इस मण्डल का चित्र भी दिया गया हैं। सैंतालीसशक्तिविधान यह रचना राजमलजी पवैया की हिन्दी पद्य में है। जैनदर्शन की सनातन मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा में अनंत शक्तियाँ विद्यमान हैं। आत्मा अनादिकाल से अनन्त शक्तियों का पुंज रहा है। वे शक्तियाँ अशुभ कर्मावरण से आवृत्त है। आचार्य अमृतचंद्र ने आत्म तत्त्व की ४७ शक्तियों का समयसार परिशिष्ट में उल्लेख किया है। श्री कानजीस्वामी का एक 'आत्मप्रसिद्धि' नामक ग्रन्थ है, उसमें सैंतालीस शक्तियों पर दिये गये प्रवचन संकलित हैं। श्री पवैया जी ने ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय को आधार बनाकर प्रस्तुत विधान की रचना की है जो वस्तुतः आध्यात्मिक है। यद्यपि शक्ति पूजक परम्पराओं की इस देश में कमी नहीं है तथापि जैन धर्म में इसका स्वरूप सबसे विलक्षण है। यह कहना नितान्त भ्रमपूर्ण है कि जैनधर्म में शक्ति साधना अन्य मतों से ग्रहण की गई है वस्तुतः कोई भी आत्मा बिना शक्ति के नहीं है। यदि आत्मा में शक्ति न होती तो न वह संसारी हो सकता है न मुक्त। संसारी होना या मुक्त होना किसी परमात्मा की कृपा या प्रसाद का फल नहीं है। अतएव जब से आत्मा है तब से उसमें गुणधर्म रूप शक्तियाँ भी हैं और उन शक्तियों के कारण ही वस्तु परिणामी नित्य है। यह मान्तया जैन धर्म के सिवाय अन्य मत में नहीं पायी गई है। किस शक्ति का क्या कार्य है इसका स्पष्ट वर्णन इस रचना में किया गया है। वास्तव में जैन धर्म में पूजन विधान का स्वरूप व्यक्ति परक न होकर गुण तथा भावपरक हैं। अस्तु इस विधान में रचनाकार ने सिद्ध परमात्मा को लक्ष करके सैंतालीस शक्तियों से सम्बन्धित बृहद् पूजा रची है यह प्रथम बार किया गया सृजनात्मक कार्य लगता है। अध्यात्म जैसे दुरुह विषय को सरल शैली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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