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________________ 324/प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य निशीथसूत्र प्रस्तुत आगम का नाम 'निशीथ' है। आचारांगनियुक्ति' में 'आयारकप्प' और 'निसीह' ये दो नाम प्राप्त होते हैं। छेदसूत्रों में निशीथ का प्रमुख स्थान है। निशीथ का अर्थ अप्रकाश्य' है। यह सूत्र अपवाद बहुल है। अतः इस सूत्र का वाचन अपरिपक्व को नहीं कराया जा सकता है। छेदसत्र भी दो प्रकार के निर्दिष्ट हैं। कुछ अंग प्रविष्ट के अन्तर्गत आते हैं और कुछ अंगबाह्य के अन्तर्गत आते हैं। निशीथसूत्र अंग प्रविष्ट के अन्तर्गत आता है। ___निशीथ के रचनाकार के विषय में कई मत-मतान्तर है। सत्यमूलक कथन करना यहाँ शक्य नहीं है। वस्तुतः यह गोपनीय रखा जाने योग्य सूत्र है। यह अर्थ सूत्र के नाम से ही प्रगट होता है। इसके विषय में उल्लेख मिलते हैं कि जैसे रहस्यमय विद्या, मन्त्र, तन्त्र, योग आदि अनधिकारी या अपरिपक्व बुद्धि वाले व्यक्ति को नहीं बतायी जाती है वैसे ही निशीथसूत्र भी गोप्य है। निशीथ का अध्ययन वही कर सकता है जो तीन वर्ष का दीक्षित हो और गांभीर्य आदि गुणों से युक्त हो। प्रौढ़ता की दृष्टि से बगल में बालवाला एवं सोलह वर्ष की आयु पर्यायवाला साधु ही निशीथ का पाठक हो सकता है। व्यवहारसूत्र में कहा गया है कि निशीथ का ज्ञाता हुए बिना कोई भी श्रमण अपने सम्बन्धियों के यहाँ भिक्षा के लिए नहीं जा सकता है और न ही वह उपाध्याय आदि पद के योग्य माना जा सकता है। श्रमण-मण्डली का अग्रज होने में और स्वतन्त्र विहार करने में भी निशीथ का ज्ञान आवश्यक है। इतना ही नहीं निशीथ का ज्ञाता हुए बिना कोई साधु प्रायश्चित्त देने का अधिकारी भी नहीं हो सकता है। इसीलिए व्यवहारसूत्र में निशीथ को एक मानदण्ड के रूप में प्रस्तुत किया है। ___ यह आचारांग की पाँचवी चूला है। इसे एक स्वतन्त्र अध्ययन भी स्वीकारा गया हैं। यह गोपनीय होने से इसका अपर नाम निशीथाध्ययन है। स्वरूपतः यह प्रायश्चित्त सम्बन्धी विधि-विधान का आकर और मूलभूत ' आचारांगनियुक्ति गा. २६१-३४७ २ निशीथभाष्य श्लोक ६४ ३ (क) निशीथचूर्णि ६१६५ (ख) व्यवहारभाष्य उ.७, भा. २०२-३ (ग) व्यवहारसूत्र उ.१०, गा. २०-२१ " वही उ.६, सू. ३ * व्यवहारसूत्र उ.३, सू. १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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