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________________ 210 / संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य इस कृति के प्रारंभ में संकलनकर्ता द्वारा मंगलाचरण के निमित्त एक श्लोक दिया गया है। उसमें अनेक विशेषणों के साथ चरम तीर्थाधिपति महावीर प्रभु को वन्दन किया गया है । अन्त में प्रशस्ति रूप छः श्लोक दिये गये हैं उससे ज्ञात होता है कि संकलनकर्त्ता खरतरगच्छ परम्परा के अनुयायी है- उन्होंने अपनी गुरु परम्परा इस प्रकार दी है- खरतरगच्छीय मंडन जिनकीर्तिरत्नसूरि हुये, उस शाखा के अन्तर्गत क्रियोद्धार करने वाले जिनकृपाचन्द्र सूरि हुये हैं, उनके शिष्य उपाध्याय सुखसागर हुए, उनके शिष्य मुनि मंगलसागर के द्वारा प्रस्तुत कृति विधिप्रपादि प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार, वि. सं. १६६७ नागपुर में तैयार की गई है। मुख्यतः इसमें दो प्रकार के विधि-विधान दिये गये हैं १ प्रथम प्रकार के विधि-विधान सोलह संस्कारों से सम्बन्धित है २. दूसरे प्रकार के विधि-विधान जैन विवाह पद्धति से सम्बद्ध है। इस कृति में सोलह संस्कारों से सम्बन्धित निम्नलिखित विषयों पर चर्चा हुई है यथा- गर्भाधान संस्कार विधि, स्नान विधि, चूड़ा पहनाने की विधि, मंदिर दर्शन विधि, शिशु को जैन बनाने की विधि, घाट ओढ़ने ( सौभाग्यसूचक लालरंग की साड़ी ओढ़ने) की विधि, जैन पद्धति के अनुसार जन्मदिन मनाने की विधि । इसके साथ विदेशी एवं आधुनिक संस्कृति के आधार पर जन्मदिन मनाने की रीति भी दिखलायी गई है। इसमें जैन पद्धति से विवाह सम्पन्न करने की विधि बतलायी गई हैं जैसे १. तिलक लगाना, २ . सगाई करना ३. निमन्त्रण पत्र प्रेषित करना ४. मूंग हाथ में लेना ५. कलश या भांड़ा लाना ६. बिन्दोरा जिमाना ७. बत्तीसी न्यौतना ८. मायरा भरना ६. भियाना या उसरी करना - इस विधान में वर या वधू को चौकी पर बिठाकर और रोली का तिलक लगाकर पताशे को घी में करके खिलाया जाता है। १०. पीठी लगाना ११. तेल चढ़ाना १२. फेरों के लिए वेदी की रचना करना १२.१ स्तंभारोपण ( यह चंवरी के दक्षिण-पश्चिम कोने में किया जाता है ) १३. चँवरी बनाना १४. तोरण बांधना १५. बारात का स्वागत करना १६. वरमाला पहनाना १७. प्रीतिभोज करना १८. फेरे का संस्कार करना १६. कन्या को विदाई देना २०. मसेडे की रीति करना- इसमें विवाह के दूसरे दिन वर-वधू को कन्या के पिता के घर भोजन हेतु बुलाया जाता है फिर कन्या को भेंट दिया हुआ सामान देकर विदा किया जाता है और भी क्रियाएँ होती हैं। २१. वर पक्ष के रीति-रिवाज - जैसे वर निकासी करना ( यह विधि बारात प्रस्थान के समय की जाती है, टूटया करना- अर्थात् बारात प्रस्थान होने के बाद महिलाओं द्वारा किया गया मनोरंजन, दूल्हा-दुल्हन का गृह प्रवेश, सुहाग थाल लूटाना इत्यादि विधियों का निरूपण किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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