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188 / संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
के दुख, शोक, मरण का कारण बनता है अतः पिता एवं कुल के ज्येष्ठ शांतिविधि (३३ वाँ द्वार) में कहे गये विधान को सम्पन्न किये बिना शिशु का मुख नहीं देखें। इस विधि के अन्तर्गत जल को अभिमन्त्रित करने का मंत्र और रक्षाकाल का मंत्र दिया गया है।
४. सूर्य-चन्द्र दर्शन संस्कार विधि - यह संस्कार बालक को सूर्य-चन्द्र के दर्शन करवाये जाने से सम्बन्धित है। इसमें शिशु को बाहरी संसार से अवगत कराने के लिए सूर्य एवं चन्द्र का दर्शन कराया जाता है इस ग्रन्थ के अनुसार यह दर्शन जन्म के पश्चात् तीसरे दिन कराया जाता है । प्रस्तुत अधिकार में कहा गया है कि यह संस्कार सम्पन्न करने के लिए स्वर्ण रजत या रक्त चंदन की सूर्य एवं चन्द्र की प्रतिमाएँ बनायी जाती है। इन प्रतिमाओं के समक्ष शांतिकर्म एवं पुष्टि कर्म सम्पन्न किया जाता है। सूर्य का दर्शन प्रातः एवं चन्द्र का दर्शन संध्या को कराया जाता है तथा संस्कार की क्रिया सम्पन्न होने के बाद सूर्य-चन्द्र की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।
५. क्षीराशन-संस्कार विधि - जिसमें शिशु को क्षीर अर्थात् दुग्ध का आहार कराया जाता है उसे क्षीराशन संस्कार कहते हैं। यह संस्कार विधि-विधान पूर्वक शिशु को दुग्ध पान कराये जाने से सम्बन्धित है।
इस संस्कार की चर्चा करते हुए कहा गया है कि यह संस्कार जन्म के पश्चात् तीसरे दिन अर्थात् सूर्य-चन्द्र दर्शन के दिन ही किया जाता है। इसमें यह भी कहा गया है कि यह संस्कार सम्पन्न करने के पूर्व अमृतमंत्र से १०८ बार अभिमंत्रित किये गए तीर्थ जल को शिशु की माता के दोनों स्तनों पर सिंचन किया जाता है।
६. षष्ठी - संस्कार विधि - इस उदय में षष्ठी संस्कार को सम्पन्न करने सम्बन्धी विधि की चर्चा करते हुए कहा गया है कि इस संस्कार में बालक के जन्म के छठे दिन विधि-विधान पूर्वक देवी ( षष्ठी माता) की पूजा की जाती है । ग्रन्थकार के अनुसार षष्ठी संस्कार का तात्पर्य बाह्मी आदि आठ माताओं सहित अम्बिका देवी के पूजन से है ।
इस संस्कार को सम्पन्न करने के सम्बन्ध में कहा गया है कि सधवा स्त्रियों के द्वारा सूतिका गृह के भित्तिभाग एवं भूमिभाग पर गोबर का लेप करायें। फिर शुभ दिनादि में भित्ति भाग पर खडी या मिट्टी से सफेदी कराये फिर भित्ति के सफेद वाले भाग पर कुंकुम - हिंगुल आदि लालवर्णों से आठ खडी हुई, आठ बैठी हुई और आठ सोयी हुई माताओं का आलेखन करवायें। तत्पश्चात् इन माताओं का आह्वान पूर्वक पूजन करें। रात्रि जागरण करें, दूसरे दिन प्रत्येक माता का नाम लेकर उनका विसर्जन करें।
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