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________________ 166/विविध तप सम्बन्धी साहित्य १०३. क्षीर-समुद्र तप १०४. कोटिशिला तप १०५. पाँचपच्चक्खाण तप १०६. गौतम-कमल तप १०७. घडिया दो घटिया तप १०८. पैंतालीसआगम तप १०६. तेरहकाठिया तप ११०. देवल-इंडा तप १११. नव निधान तप ११२. दसपच्चक्खाण का छोटा तप ११३. नवपदओली तप ११४. नवब्रह्मचर्यगुप्ति तप ११५. निगोदआयुक्षय तप ११६. निजिगीष्ट तप ११७. पदकडी तप ११८. पंचामृत तप ११६. पाँच-छठ तप १२०. पंचमहाव्रत तप १२१. श्री पार्श्वजिनगणधर तप १२२. दूज तप १२३. बड़ा रत्नोत्तर तप १२४. रत्नरोहण तप १२५. बृहत्संसारतारण तप १२६. लघु संसारतारण तप १२७. शत्रुजयमोदक तप १२८. शत्रुजयछठअट्ठम तप १२६. शिवकुमार बेला तप १३०. षट्कायतप १३१. सात सौख्य आठ मोक्ष तप १३२. सिद्धि तप १३३. सिंहासन तप १३४. सौभाग्यसुन्दर तप १३५. स्वर्ग-करंडक तप १३६. स्वर्ण-स्वास्तिक तप १३७. बावनजिनालय तप १३८. अष्टमहासिद्धि तप १३६. रत्नमाला तप १४०. चिंतामणि तप १४१. परदेशी राजा का छट्ठ तप १४२. सुख-दुख महिने का तप १४३. रत्न-पावड़ी तप १४४. सुन्दरी तप १४५. मेरू-कल्याणक तप १४६. तीर्थ तप १४७. प्रातिहार्य तप १४८. पंचरंगी तप १४६. युगप्रधान तप १५०. संलेखना तप १५१. सर्वसंख्या श्रीमहावीर तप १५२. कनकावली तप १५३. मुक्तावली तप १५४. रत्नावली तप १५५. बृहत्सिंह-निष्क्रीडित तप १५६. गुणरत्न-संवत्सर तप १५७. एकावली तप १५८. महाधन तप १५६. वर्ग तप १६०. चौबीसतीर्थकर पंच कल्याणक अष्टालिका तप १६१. श्रीमहावीर तप १६२. अदुःखदर्शी तप १६३. बृहन्नंद्यावत तप १६४. बीसस्थानक तप १६५. चतुर्गति-निवारण तप १६६. चउसट्ठी तप १६७. चंदनबाला तप १६८. छयानवे जिनदेवों का ओली तप १६६. जिनगुण सम्पत्ति तप १७०. जिन जनक तप तपोरत्नमहोदधि यह एक संकलित कृति है। इस कृति का सम्पादन श्री रामचन्द्रसूरि (डहेलावाला) के शिष्य भुवनविजयजी (भुवनभानुसूरि) ने किया है। यह कृति गुजराती भाषा में निबद्ध है, किन्तु इसके साथ ही प्रायः तप विधियों का स्वरूप संस्कृत पद्य में भी दिया गया है कहीं-कहीं संस्कृत गद्य का भी निर्देश है। यह कृति अपने नाम के अनुसार तप सम्बन्धी विधि-विधानों का सागर है। इसमें प्रायः तप संबंधी सभी विधियों का सम्यक् विवेचन किया गया है। इसे इस विधा का आकर ग्रन्थ कहा जा सकता है। वस्तुतः इस ग्रन्थ में १६३ तपों का स्वरूप एवं उनकी विधियाँ प्रतिपादित हैं। इसमें अधिकांश तपों की उद्यापन विधि भी लिखी गई है। इस कृति में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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