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156/षडावश्यक सम्बन्धी साहित्य
ग्रन्थ के प्रारम्भ में वीरप्रभु को नमस्कार करके उपासकों के उपकार के निमित्त अनुष्ठान विधि कहने की प्रतिज्ञा की गई है।
इस कृति में नमस्कारमन्त्र, इरियावहिसूत्र, तस्सउत्तरीसूत्र, अन्नत्थसूत्र, शक- स्तवसूत्र, अरिहंतचेईयाणंसूत्र, चतुर्विंशतिस्तवसूत्र, श्रुतस्तव, सिद्धस्तव, जयवीयरायसूत्र, आलोचनासूत्र, क्षामणासूत्र, प्रतिक्रमणसूत्र आदि की व्याख्याएँ की गई हैं। साथ ही शकस्तव में प्रसिद्ध मेघकुमार का, चैत्यस्तव में प्रसिद्ध दशार्णभद्र का, सिद्धस्तव में गौतम स्वामी का, प्रत्याख्यान के सम्बन्ध में दामन्नक का, सम्यक्त्व में नरवर्म का, प्राणातिपात आदि बारहव्रतों में क्रमशः यज्ञदेव का, सागराग्निशिख का, परशुराम का, सुरप्रिय का, क्षेमादित्यधरण का, शिवभूतिस्कन्द का, मेघ और सुप्रभ का, चित्रगुप्त का, मेघरथ का, पवनंजय का, ब्रह्मसेन का, नरदेव का धर्मघोष-धर्मयश का दृष्टान्त दिया गया है। इस विवेचन के साथ-साथ वन्दन विधि, प्रतिक्रमण विधि, प्रत्याख्यान विधि का भी निरूपण किया गया है।
श्रमण-आवश्यकसूत्र
यह कृति स्थानकवासी परम्परा से सम्बन्धित है। इसमें श्रमण-श्रमणी की प्रतिक्रमण विधि एवं उसके सूत्र दिये गये हैं। ये सूत्र मूलतः प्राकृत में हैं। यह कृति हिन्दी भाषान्तर के साथ प्रकाशित है। स्थानक परम्परा के अनुसार साधु-साध्वी की प्रतिक्रमण विधि में प्रमुख रूप से जो सूत्र बोले जाते हैं वे ये हैं१. वन्दनसूत्र, २. नमस्कारमंगलसूत्र, ३. ईर्यापथिकसूत्र, ४. कायोत्सर्गप्रतिज्ञासूत्र (तस्स.) ५. आगारसूत्र (अन्नत्थ.), ६. उत्कीर्तनसूत्र (लोगस्स.), ७. शक्रस्तवसूत्र, ८. इच्छामिणंभंतेसूत्र, ६. सामायिकसूत्र (करेमिभंते.), १०. इच्छामिठामिसूत्र ११. ज्ञान-दर्शन एवं चारित्र के अतिचारों का पाठ, १२. अठारह पापस्थानक का पाठ, १३. वांदणासूत्र, १४. चत्तारिमंगल का पाठ, १५. पगामसिज्झायसूत्र, १६. गोचरचर्या (गोचरियाण) १७. प्रतिलेखनासूत्र, १८. तेतीसबोल, १६. तेतीस अशातना, २०. नमोचोवीसाए २१. अरिहंतादि पाँच पदों की भाव वन्दना, २२. अनन्त चौबीसी का पाठ, २३. आयरियउवज्झाय का पाठ, २४. चौराशी लाख जीवयोनि का पाठ, २५. प्रायश्चित्तशुद्धि का पाठ
' यह पुस्तक द्वितीयावृत्ति के रुप में 'सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल बापू बाजार जयपुर' से प्रकाशित है।
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