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122/साध्वाचार सम्बन्धी साहित्य
मुनि के लिए इन सामाचारियों का पालन करना अनिवार्य बताया गया है। इनमें से एक-दो छोड़कर शेष मुनि जीवन की दैनिक सामाचारियाँ हैं। संयमी जीवन में प्रवेश करने हेतु तत्पर हुए मुमुक्षुओं के लिए इन सामाचारियों का अध्ययन करना आवश्यक माना गया है। ये समाचारियाँ संयमी जीवन को सुखद व सुखकारी बनाने में नींव के समान है। इन कृत्यों का विधिवत् पालन करने वाला मुनि वैयक्तिक, सामुदायिक एवं सामाजिक सभी दृष्टियों से योग्य विकास करता है।
इस ग्रन्थ के आरम्भ में सरस्वती देवी का स्मरण कर ग्रन्थ रचने की प्रतिज्ञा की गई है। उसके बाद सामाचारी को चारित्र का आधारभूत तत्त्व कहा है। तदनन्तर सामाचारियों का विस्तृत प्रतिपादन किया गया है। वे संक्षेप में इस प्रकार है- १. इच्छाकार- दूसरों से उनकी इच्छापूर्वक काम करवाना या दूसरों का काम करना।
२. मिथ्याकार- किसी भी प्रकार की गलती होने पर उसे तुरन्त स्वीकार करना और पश्चाताप पूर्वक 'मिच्छामिदुक्कडं' देना।
३. तथाकार- गुरूजी जो कहे उसे 'तहत्ति' कहकर उसी रूप में स्वीकार करना
४. आवश्यिकी- आवश्यक कार्य के लिए उपाश्रय से बाहर निकलते समय ‘आवश्यक कार्य के लिए बाहर जा रहा हूँ' इसके सूचक रूप में 'आवस्सहि' शब्द कहना।
५. निषीधिका- जिनमन्दिर या उपाश्रय में प्रवेश करते समय 'अशुभ प्रवृत्तियों का त्याग करने निमित्त' उसका सूचक निसीहि' शब्द बोलना।
६. आपृच्छना- कोई भी कार्य गुरु से पूछकर करना।
७. प्रतिपृच्छना- गुरु ने जिस कार्य से लिए मना किया हो, बाद में उसको करने की आवश्यकता पड़ने पर पुनः गुरु से पूछना
८. छन्दना- आहार-पानी लाने के बाद गुरु से उसे स्वीकार करने हेतु निवेदन करना।
६. निमन्त्रणा- आहार-पानी लेने जाने के पहले गुरु की अनुमति लेना या अन्य साधुओं को आहारादि ग्रहण करने हेतु निमन्त्रित करना।
१०. उपसंपदा- ज्ञानादि गुणों की आराधना के लिए गुरु की आज्ञापूर्वक अन्य आचार्य के पास रहना।
उपर्युक्त सामाचारियों का यथासमय पालन करने वाला श्रमण अन्य
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