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________________ आचारदिनकर (खण्ड-: -8) 16 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि और दोनों के गिर जाने या नष्ट हो जाने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। अविधिपूर्वक भोजन करने पर तथा भोजन में काल का ध्यान न रखने पर क्रमशः निर्विकृति एवं उपवास का प्रायश्चित्त आता है। भोजन - पानी ढंके नहीं, मल-मूत्र एवं कालभूमि का प्रतिलेखन न करे, तो निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। नवकारसी - पोरसी वगैरह प्रत्याख्यान नहीं करे, या प्रत्याख्यान लेकर तोड़ दे, तो उसके लिए पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार तप - प्रतिमा का अभिग्रहण ग्रहण नहीं करे, अथवा लेकर तोड़ दे, तो उसका भी प्रायश्चित्त पूर्वार्द्ध ही बताया गया है। पाक्षिक, चातुर्मासिक या सांवत्सरिक प्रतिक्रमण न करे, तो क्रमशः नीवि, आयम्बिल तथा उपवास का प्रायश्चित्त आता है । गुरु से पहले ही कायोत्सर्ग पूर्ण कर ले, कायोत्सर्ग में पाठ उच्चारण जल्दी-जल्दी करे, अथवा कायोत्सर्ग का मध्य में ही भंग करे, वन्दन एवं शक्रस्तव में भी इसी प्रकार करे, तो क्रमशः निर्विकृति, पूर्वार्द्ध एवं एकासन का प्रायश्चित्त आता है, किन्तु जानबूझकर इन सभी दोषों का सेवन करने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है ये सब चारित्राचार के तप प्रायश्चित्त बताए गए हैं । अब तपाचार सम्बन्धी प्रायश्चित्त-तप बताते हैं तप नहीं करने पर या उसका भंग होने पर जघन्यतः पूर्वार्द्ध, मध्यमतः आयम्बिल एवं उत्कृष्टतः उपवास का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार दिन में प्रतिलेखन किए बिना कार्य करने पर, पूर्व में अप्रतिलेखित भूमि पर मल-मूत्र आदि विसर्जित करने पर तथा दिन में शयन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है । लम्बे समय तक क्रोधित या भयभीत रहने पर, सुगन्धित पदार्थों का सेवन करने पर तथा मद्यादि का सेवन करने पर पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है। ज्ञातिबन्धन के कारण स्वजनों के घर में रहे, तो निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है और अन्य लोगों के घर में रहे, तो पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है ये तपाचार सम्बन्धी प्रायश्चित्त बताए गए हैं । अब वीर्यातिचार में लगने वाले दोषों का तप-प्रायश्चित्त बताते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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