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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) __398 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि के विकास में आने वाले विघ्नों का नाश करते हैं तथा उसकी रक्षा करते हैं। इस प्रकार आह्वान-न्याय से इन वर्गों की महिमा देखी जाती है। पुनः, जो चार वेद हैं, वे भी आचार के कारण हैं। उनके पाठ के बिना कोई भी कर्म मनोहरता को प्राप्त नहीं करता है। अध्ययनहीन (व्यक्ति) सत्कर्म करते हुए भी शोभा को प्राप्त नहीं करता है। इस संस्कार में मन्त्रपाठ को छोड़कर कारूओं द्वारा की जाने वाली क्रिया भी एक जैसी है। इस प्रकार यह गर्भाधान-संस्कार का सार बताया गया है। पुंसवन-संस्कार - पुंसवन नामक जो द्वितीय संस्कार कहा गया है, वह गर्भ के दोषों को दूर करता है तथा गर्भ की वृद्धि एवं वर्धापन में सहायक है। यह पुंसवन- संस्कार का सार है। - जातकर्म-संस्कार - तीसरा जो जातकर्म-संस्कार बताया गया है, वह जन्म- महोत्सव करने का आदेश देता है। यह संस्कार आनंद का हेतु होने से सर्वत्र वित्त का व्यय करवाने वाला हैं। यह जातकर्म का सार है। चन्द्रार्कदर्शन-संस्कार - चन्द्र एवं सूर्यदर्शन संस्कार - इन दोनों संस्कारों का उद्देश्य प्रत्यक्ष में सृष्टि के दर्शन कराना है। इस संस्कार के माध्यम से बालक को सर्वप्रथम विश्व को प्रकाशित करने वाले सूर्यदेव एवं चन्द्रदेव के दर्शन कराए जाते हैं। यह चन्द्रार्क, अर्थात् चन्द्र एवं सूर्यदर्शन-संस्कार का सार है। क्षीराशन-संस्कार - इस संस्कार के माध्यम से शिशु को जन्म के बाद (दुग्ध) आहार कराया जाता है। यह संस्कार प्राणियों के प्रति प्रीति का भी द्योतक है, क्योंकि दुग्ध का अवतरण प्रीति के बिना नहीं होता है। - यह क्षीराशन-संस्कार का सार है। . षष्ठीजागरण-संस्कार - षष्ठीजागरण-संस्कार शिशु के मंगल हेतु किया जाता है। इसमें उसके शरीर की अधिष्ठिता षष्ठीमाता की पूजा की जाती है। साथ ही जो मातृदेवियाँ लोक में प्राणियों की रक्षा के लिए भ्रमण करती हैं, उनकी पूजा शिशु की रक्षा के लिए की जाती है। - यह षष्ठी-संस्कार का सार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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